सुकून का लम्हा
उसे पाने की कोशिश में, बहुत कुछ खो दिया हमने
न जाने वो था कब गुजरा, बहुत ढूंढा, न मिल पाया
न जाने वो घड़ी क्या थी, मिला था वो मुकद्दस, पर
जो गुजरा, फिर न मिल पाया, वो लम्हा शोख सुकुं का था
तुम्हें मिल जाए तो कहना, किया है याद इस दिल ने
चला आए फखत एक पल, न जाए वो, जो फिर आए
हर एक जर्रा है पागल आज, सभी को ख़्वाब उसका ही
मगर ठहरा वो जानिब ही, कोई बाहर ख़्वाब के आए
चलो ढूंढो उसे खुद में, वो सबमें वास करता है
वो अपना है हमेशा ही, खुदा सम नाम उसका है
चलो बांटें खुशी के पल, न कोई हो दुःखी जग में
करें सहयोग दूजे का, वो लम्हा फिर सभी का है