आचरण का सौन्दर्य
सामान्य अर्थ में आचरण का तात्पर्य अन्य लोगों या संस्थाओं के प्रति हमारे सामान्य व्यवहार से है। यदि हमारा व्यवहार अन्य लोगों के प्रति सौम्य एवं मृदुभाषी है तो ऐसे व्यक्ति को प्रायः व्यवहारकुशल व्यक्ति की संज्ञा दी जाती है और सामान्य तौर पर उसके प्रति एक आदर का भाव व्याप्त होता है। वहीं दूसरी तरफ, यदि किसी का व्यवहार क्रूर, धृष्ट या अहंकारी हो तो लोग उससे दूर भागने हेतु प्रयत्नशील रहते हैं।
वित्तीय अर्थ में भी आचरण का बड़ा ही व्यापक महत्व है जिसका संबंध प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से प्रत्येक व्यक्ति, समाज, राज्य तथा देश से है। एक ईमानदार व्यक्ति सदैव सम्मान का पात्र होता है। हालांकि अनेक अवसरों पर उसे नाना प्रकार की कठिनाईयों का सामना सिर्फ इसलिए करना पड़ता है क्योंकि उसने किसी के भ्रष्ट आचरण का या तो विरोध किया हो या फिर उसके भ्रष्ट मंसूबों के राह में बाधक सिद्ध हुआ हो। भ्रष्टाचारी व्यक्ति अपने कृत्यों से न सिर्फ वित्तीय या कानूनी अपराध कर रहा होता है बल्कि वह एक सामाजिक अपराध भी कर रहा होता है। मैंने भ्रष्टाचार को सामाजिक अपराध इसलिए कहा है कि भ्रष्टाचार के तहत किया गया प्रत्येक कृत्य कहीं न कहीं हम सबको प्रभावित करता है। यदि वह भ्रष्टाचार रिश्वत के रुप में है तो वह प्रत्यक्ष रुप से किसी व्यक्ति और संस्था की वित्तीय अवस्था पर प्रभाव डालता है। दूसरी तरफ, यदि वह भ्रष्टाचार संस्थागत व्यवस्था में हो तो वह देश के प्रत्येक राज्य, समाज और व्यक्ति को समान रुप से दुष्प्रभावित करता है। सार्वजनिक प्रणाली में गतिमान प्रत्येक पैसा देश के ईमानदार करदाताओं का है और किसी भी व्यक्ति को कोई हक नहीं है कि वो उस पैसे का दुरुपयोग करे।
सामान्य जनसमुदाय ऐसे भ्रष्टाचारी के प्रति अन्योन्य क्रिया विशेषणों का प्रयोग करके मानसिक शांति का अनुभव कर लेता है लेकिन यह कानून व्यवस्था की व्यापक जिम्मेदारी है कि भ्रष्ट आचरण में लिप्त उस व्यक्ति को ऐसे घृणित कर्म करने से रोके तथा कठोर दंड के ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करे जिससे कोई भी प्राणी भ्रष्टाचार करने से पहले सौ बार सोचने को विवश हो।
आचरण निर्माण की पहली प्रयोगशाला हमारा अपना परिवार होता है। एक माता–पिता अगर बच्चों के आचरण के नियंत्रक होते हैं तो वहीं दूसरी तरफ बच्चे भी भ्रष्टाचार रोकने में एक महती भूमिका अदा कर सकते हैं। परिवार में भ्रष्ट आचरण में लिप्त किसी भी व्यक्ति को यह अनुभव कराना अत्यंत आवश्यक होता है कि वह एक कुकृत्य कर रहा है और इसके लिए उसका परिवार कभी भी उसका साथ नहीं देगा। इस परंपरा का सबसे बेहतरीन उदाहरण महाभारत में प्राप्त होता है।
आइए हम सब मिल कर एक संकल्प लें कि हम स्वयं तथा अपने परिवार को कभी भी भ्रष्टाचार का पनाहगाह नहीं बनने देंगे और विलासिता के साधनों को जुटाने की लालसा से कभी भी किसी भी प्रकार का भ्रष्टाचार न तो स्वयं करेंगे और न ही किसी भी प्रकार का समर्थन देंग। इसके साथ ही जहां तक संभव हो सके, अपने सामान्य व्यवहार को भी सौम्य एवं मृदु रखने का प्रयास करेंगे तथा अपनी संतानों को भी ऐसी ही शिक्षा प्रदान करेंगे।
यहां यह बात भी विचारणीय है कि अत्यधिक सौम्य होना अक्सर दुष्टों के मन में यह भ्रांति उत्पन्न कर देता है कि सौम्यता व्यक्ति की कमजोरी की परिचायक है। अतः ऐसी परिस्थिति में शठे शाठ्यम् समाचरेत की शिक्षा तो स्वयं भगवान भी देते हैं।