एक प्रेमी की व्यथा
कल तक जिनकी जान थे हम
अब भूल गए पहचान मेरी
कल तक जो मरते थे हम पर
अब भूल गए वो शान मेरी
जिनके दिन का एक चैन थे हम
जिनके दिल का विश्वास थे हम
वो आज हमें ही भूल गए
जिनके दिन रात का नाम थे हम
चस्का जो लगा उनको दूजा
फिर कौन लखे लाखों के यार
जिनकी परिभाषा बदल गईं
फिर कौन सखी और कौन सा यार
अब उनको हम न सुहाते हैं
वो फिर भी दिखावा करते हैं
अब आता नहीं है जवाब कभी
सब पढ़ कर वो चुप रहते हैं
वो बात अभी भी तो करते हैं
हमसे न सही, कोई और सही
वो ध्यान अभी भी तो धरते हैं
भले मन मंदिर में हम न सही
हम फिर भी उनकी यादों में
अब भी कुछ सोचा करते हैं
कर याद पुराने लम्हों को
उन्हें और दुवाएं देते हैं
वो रहें कहीं भी, किसी के भी
वो रहें हमेशा ही खुशहाल
वो जिएं हसीन लम्हें समस्त
हम रहें भले ही तंगहाल
नहीं कोई गिला न शिकायत है
जो मेरे न थे, न मेरे हुए
बस दौर मेरी तन्हाई का
चलता ही रहे और यूं ही चले
अब ठान लिया, फिर भान लिया
हम भी कुछ हैं ये मान लिया
अब कोई गिला नहीं आशा है
मुड़कर देंखेंगे अब न उन्हें