दुनिया में लगातार पनप रहे अविश्वास और अनवरत जारी विश्वासघात के दौरे नजर पेश हैं चंद पंक्तियां :-
खुले ज़ख्मों को मरहम की, नजर देते नहीं हैं अब
रगड़ते हैं नमक लेकर, दवा के नाम पर अब सब
अगर ज़ख्मी हुआ अर्पण, वो दिल हो या बदन तेरा
परख कर ही हकीम ए मर्ज, दिखाना ज़ख्म फिर तेरा