सड़क सुरक्षा – जिम्मेदार कौन
सच कहूं तो आज समझ में ही नहीं आ रहा कि क्या लिखूं और किस मुद्दे पर लिखूं।
ऐसा नहीं है कि मेरे पास लिखने के लिए विषय का अभाव है किन्तु पिछले कुछ समय से देश दुनिया में चल रहे आतंक के प्रलय और मातम की हृदय विदारक चीखों से मन व्यथित है।
अपनों को खोने के दुख का अंदाजा मनुष्य को सिर्फ तब होता है जब उसका कोई अपना उसे छोड़ कर चला जाता है। उसके अतिरिक्त बाकी सबकी जान उसे सस्ती ही लगती है।
देश पर शहीद वाले सैनिक और उसके घर वालों को पता होता है कि वह देश के लिए कुछ करके गया है लेकिन उन मासूमों को तो उनकी गलती भी पता नहीं होती जिनको कोई लापरवाह ड्राइवर बिना किसी उद्देश्य के ही कुचल कर निकल जाता है। मानवीय संवेदनाओं के निरंतर पड़ते अकाल के दौर में हम परिवहन विभाग के साइनबोर्डो की वो टैगलाइन कैसे भूल जाते हैं – speed thrills but kills
खाली सड़क पर भी गति की सीमा तय होती है लेकिन भीड़भाड़ वाले इलाकों, बाजार या रिहायशी क्षेत्रों में अंधाधुंध गाड़ी चलाकर आखिर क्या सिद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है। सड़क हादसों में जान गंवाने वालों की संख्या हर मिनट बढ़ती ही जा रही है। तमाम प्रयासों और जागरूकता अभियानों के बावजूद लोगों में जागरूकता का अभाव स्पष्ट दिखता है। ट्रैफिक रूल्स का पालन न करना पता नहीं कौन सी शान की बात है।
देश के एक राज्य में रेड लाइट क्रॉस करने को लेकर जोक्स बनते हैं। एक दूसरे राज्य में ट्रैफिक discipline को लेकर तरह तरह की बातें होती हैं। लगभग यही हालत देश के बहुतायत राज्यों की हो सकती है। बार बार समझाने के बावजूद दोपहिया सवार अक्सर बिना हेलमेट ही चलते दिखते हैं। चार पहिया वाहनों में सीट बेल्ट न बांधना भी अनवरत जारी है। 2 सेकंड का इंतजार करना पसंद नहीं है लेकिन ओवरटेकिंग के चक्कर में जान गंवाना, ये कौन सी बुद्धिमानी है?
घर पर जिसके लिए प्यार की कसमें खाते हैं, सड़क पर उन्हीं घर वालों का ध्यान क्यों नहीं आता भला?
दुर्घटना से देर भली। याद रखें कि कोई घर पर आपके आने के इंतजार में है और उसी तरह दूसरे लोगों के घरवाले भी। इसलिए सड़क पर जब भी निकलें, समझदारी दिखाएं। खुद भी सुरक्षित रहें और दूसरों को भी सुरक्षित रहने दें। जिएं और जीने दें।
धन्यवाद।