दिव्य गुणों से भरा है मन, मगर चंचल सदा से है
चला जाता कहीं अक्सर, बिना पूछे बिना बूझे
प्रभु समझें कठिन पीड़ा जो है अरदास सेवक की
जलाएँ ज्योति अंतर्मन जो देती हर्ष जीवन की
करें कल्याण जगती का बनूँ मैं साध्य सृष्टि का
न हो कलुषित किसी का मन, बनें संसार ज्योर्तिमय
कभी पूछें कहीं शंकर कि अर्पण पुत्र किसका है
कहाँ जाता, कहाँ रहता, है हर्षित वृत्ति क्या करता
किसे ढूंढे तू सागर में, पथिक तू राह से भटका
बता मंजिल है तेरी क्या, क्यों मायाजाल में अटका
न जानूं मैं कि मैं क्या हूँ, कहाँ जाता, कहाँ रहता
पथिक मैं उस डगर का हूँ, जहाँ मेरा है शिव रहता
अंधेरे मेरे जीवन के मुझे जब भी डराते हैं
अकेली राह में जब पाँव शूलों से बिंध जाते हैं
लगे जब भी कि दुनिया में न रंगत है न चाहत है
मेरा शिव मुझको जीवन का नया ही रंग दिखाता है
मेरे जीवन की धारा को वही साहिल दिखाता है
हजारों कालिमाओं में नया सूरज सजाता है
नहीं मैं योग्य इतना कि करुँ कविता महादेव पर
हूँ याचक, निपट व साधनहीन, न जानूँ साधना के स्वर
पथिक मैं उस डगर का हूँ, जहाँ मिल पाउँ मैं खुद से
है चाहत ज्ञान वो पा लूँ, सुना था शुक ने जो शिव से
महाशिवरात्रि का ये दिन, है पावन और मधुर उत्सव
शिव–शक्ति करें रोशन, सभी का घर, सभी का मन
करें कल्याण सृष्टि का, हरें हर दुख, भरें भंडार
खड़ा करबद्ध है अर्पण, करे अर्पण दुर्गुण तेरे द्वार
– Arun अर्पण
he bhagvan prarthana uski ,sda svikar kr Lena.
Ye antarman ki aasha ko ,nya ak rah tu dena .
rhe nirdwand jivan me , n koi dwand ho mn me .yhi ak h vinay meri ,prabhu swikar kr lena.
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रहे गम लाख राहों में, रहे तूफान पग पग पर
वो हर लेगा बिना मांगे, तू हरिहर पर भरोसा धर
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