होली और आज का माहौल
“होली के दिन दिल खिल जाते हैं, रंगों में रंग मिल जाते हैं
गिले शिकवे भूल के दोस्तों, दुश्मन भी गले मिल जाते हैं”
एक जमाना था जब ये गाना सबकी जुबान पर होता था। उसका कारण सिर्फ गाने का खूबसूरत गीत और संगीत ही नहीं थे बल्कि सबसे बड़ा कारण उस गाने में छिपा हुआ सामाजिक सद्भाव का संदेश था। जी हां, मैं एक ऐसे त्यौहार की बात कर रहा हूं जहां रंग लगाने का मतलब सिर्फ एक दूसरे को रंगों से रंगना ही नहीं होता है बल्कि सारे गिले शिकवे भूल कर एक दूजे के रंग में फिर से रंग जाना भी होता है। जिस प्रकार होली के रंग बिरंगे रंग एक दूसरे के साथ मिलकर एक नए रंग और माहौल की रचना करते हैं ठीक उसी रंग और माहौल की अपेक्षा दिल के रंगों से भी की जाती है।
हम खुशकिस्मत रहे हैं कि हमने अपने जीवन के शुरुवाती दिनों में ऐसे माहौल को देखा भी है और करीब से महसूस भी किया है लेकिन आज जैसे जैसे रंगों की रंगत में केमिकल की अधिकता होने लगी उसी प्रकार दिल की गलियां भी निरंतर संकरी होती चली गईं। होली का त्यौहार एक दूजे से प्रेम से मिलने की बजाय हुल्लड़पन और शराब से सराबोर दिन के रूप में रूपांतरित होता चला गया। यहां तक कि नादान बचपन भी अब होली के रंगों की तरफ आकर्षित होने के बजाय इंटरनेट और मोबाइल की रंगीनियों में ही होली का आनंद ढूंढ़ता है। रंगों की होली अब मुहल्ले, गांव या शहर से सिमट कर घर की चारदीवारी में कैद होकर रह गई है। वो तो भला हो इस सेल्फी के आविष्कारक के साथ साथ सोशल मीडिया का, जिसकी वजह से कुछ रंगे पुते चेहरे अभी भी दिख जाया करते हैं वरना हालत और भी दयनीय होती।
90 के दशक या उससे पहले जन्म लिए लोगों को आज भी पुरानी होली जरूर याद आती होगी। होली के गीत गाती टोलियां, रंग बिरंगे चेहरों से सजी होली की बारात और बच्चों की होली की मासूम जिद के साथ दिन का पूर्वार्द्ध बीत जाता था। दिन के उत्तरार्द्ध में नए कपड़े पहनकर लोग एक दूजे के घर मिलने जाते थे और होली की शुभकामनाएं देते थे। सामूहिक होली मिलन समारोह एक सामाजिक आयोजन के तौर पर आयोजित होते थे जिनका स्वरूप बदल कर अब पूर्ण रूप से राजनैतिक हो चुका है। छोटे मोटे झगड़े और मतभेद मिटाने के लिए इससे अच्छा दिन शायद ही कभी होता था। आज की पीढ़ी ये मान रही होगी कि मैं किसी कल्पित परिकथा की बात कर रहा हूं। जबकि ये उस जमाने की सच्चाई है जब परिवार का मतलब सिर्फ पति पत्नी और उनके बच्चे नहीं बल्कि एक दूसरे से जुड़े और भी कई रिश्ते होते थे जो एक दूसरे के लिए कुछ भी करने के लिए तत्पर होते थे। इसके अलावा दोस्ती का मतलब कोई बाहरी व्यक्ति के साथ एक जुड़ाव नहीं बल्कि दोस्त घर का एक सदस्य होता था। तब रिश्ते दारू की एक बोतल की वजह से टूटते नहीं थे बल्कि इतने टिकाऊ होते थे कि अगर कोई दोस्त किसी कारणवश अपने दोस्त की शादी में भी न पहुंच पाया हो तब भी वो दोस्त उस दोस्ती को पहले से भी ज्यादा सिद्दत से निभाता है। जी हां, प्यार का मतलब तब उम्मीदें नहीं बल्कि समर्पण था। जो थोड़ा बहुत मनमुटाव होता भी था तो वो होली के रंगीन रंगों में अपना अस्तित्व खो देता था।
आज लोग भी वही हैं, त्यौहार भी वही हैं, सूरज, चांद, तारे, जमीन, आसमान और प्रकृति का हर रंग भी वैसा ही है। यहां तक खून का रंग आज भी लाल है किन्तु न जाने कैसे दिलों की गली इतनी पतली हो गई कि अब वहां किसी के रहने के लिए जगह ही नहीं बची। अर्थ का महत्व ऐसा प्रबल हुआ कि मटेरियल की कीमत मैन से ज्यादा हो गई। आभासी दुनिया का ऐसा प्रभाव बढ़ा कि वास्तविक दुनिया फीकी नजर आने लगी। त्योहारों पर मोबाइल के इनबॉक्स तो फुल हो जाते हैं लेकिन दिल के इनबॉक्स में कोई झांकने की भी कोशिश नहीं करता। और शायद यही कारण है कि अब त्यौहार सिर्फ सेल्फी और औपचारिकता के ही प्रतीक होकर रह गए हैं जो वास्तव में एक गंभीर चिंतन का विषय है।
होली के इस मनोरम अवसर पर मैं आप सभी के जीवन में खुशियां, सफलताओं और जीवन के हर रंगीन पल के समावेश की कामना करता हूं। उम्मीद करता हूं कि आप में से कोई भी होली की शाम को किसी नाले की शान बनता हुआ न दिखे। सबके चेहरे मुस्कान से परिपूर्ण हों और सामाजिक दैत्यों से दूर रहते हुए होली के रंगों में सभी गम भुला दें।
एक बार फिर से आप सबको होली के त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाएं।
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