चले जब छोड़ तेरा घर
बहुत बेचैन था उस दिन, था छोड़ा जब तेरा वो दर
हुआ महसूस तब उस दिन, वो दुनिया थी न मेरा घर
मिली कीमत जो भावों की, तुम्हारे भाव जाली थे
चले जब छोड़ तेरा घर, तो दोनों हाथ खाली थे
खुली आंखों ने पाले थे, जो कुछ सपने तुझे लेकर
चलो तुमने सिखाया तो, बिना कोई रकम लेकर
संजोए थे जो कुछ सपने, था समझा जिनको अपना था
चले जब छोड़ तेरा घर, न कोई साथ अपना था
कद्रदानों की बस्ती में, मिला कोई नहीं ऐसा
जो सच्चे भावों को समझे, बिना मांगे कोई पैसा
मेरा भी नाम कम न था, थे बंदे काम के ही हम
चले जब छोड़ तेरा घर, थे संग अपने खुदी के गम
जहां बैठा वहीं पाया था एक जलसा रकीबों का
वहीं दूजी तरफ बैठा था एक टुकड़ा हबीबों का
रकिबों की वफा की डोर का अंदाजा हमको था
चले जब छोड़ तेरा घर, हबिबों का पता ना था
कसक थी एक दिल में, मैं बुरा था या वफा मेरी
सफर में मैं अकेला था, ना कोई थी जफा मेरी
नहीं थे वो मुवक्किल भी, कभी रोशन थे जो मुझसे
चले जब छोड़ तेरा घर, तो क्या शिकवा करें तुझसे
यही है रीत दुनिया की, सभी साथी हैं मतलब के
जहां तक मंच रोशन हो, लिखो किरदार तुम खुद के
बुलावा जब कभी आया, तो पर्दा गिर ही जाना है
चले जब छोड़ तेरा घर, नया दर अब ठिकाना है
है शुकराना मगर फिर भी, जो अब भी याद करते हैं
सुकून मिलता है जीवन को, वो जब फरियाद करते हैं
कभी भी गर जरूरत हो, हो छाया तम तेरे गम का
खुला है निर्ख स्वागत को, तेरी खातिर मेरे घर का
खुला है निर्ख स्वागत को, तेरी खातिर मेरे घर का
बहुत बेचैन था उस दिन, था छोड़ा जब तेरा वो दर
हुआ महसूस तब उस दिन, वो दुनिया थी न मेरा घर
बहुत ही खूबसूरत।👌👌
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बहुत बहुत धन्यवाद 😊
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स्वागत आपका।
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“यही है रीत दुनिया की, सभी साथी हैं मतलब के
जहां तक मंच रोशन हो, लिखो किरदार तुम खुद के
बुलावा जब कभी आया, तो पर्दा गिर ही जाना है
चले जब छोड़ तेरा घर, नया दर अब ठिकाना है”
सत्य और बहुत ही खूबसूरत कविता👌👍👍
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सादर धन्यवाद 🙏
सच्चाई है, सब जानते हैं। लेकिन कोई मानने को तैयार कहां 😊
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कोई ना।
जिसने माना जिसने जाना उसने तो अपने शब्दों में बयां किया ही।
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बहुत सुंदर रचना
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बहुत बहुत धन्यवाद
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