मुझे माफ़ कर देना
कहते हैं कि क्षमा विद्वतजनों का आभूषण है। क्षमा के ऊपर बहुत सारे पौराणिक और सांस्कृतिक उदाहरण और व्याख्यान पढ़ने को मिलते हैं। बचपन से यही सिखाया जाता है कि अगर आपसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए क्षमा मांग लेने में कोई बुराई नहीं है और सामने वाले व्यक्ति का भी यह नैतिक दायित्व है कि वह क्षमा मांगने वाले व्यक्ति के साथ सहानुभूति का बर्ताव करते हुए उसे माफ कर दे।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार जब भृगु मुनि भगवान विष्णु से मिलने विष्णुलोक पहुंचे तो भगवान विष्णु विश्राम की मुद्रा में थे। बारम्बार जगाने पर भी जब उनकी नींद नहीं खुली तो भृगु मुनि ने उनके वक्षस्थल पर एक जोरदार लात मारा जिससे भगवान विष्णु की नींद खुल गई। उन्होंने जागते ही सबसे पहले पूछा कि उनके कठोर वक्षस्थल पर किए गए प्रहार की वजह से मुनि के पैरों में कहीं चोट तो नहीं अाई।
क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात
क्या बिगड़ी रघुनाथ की, जब भृगु मुनि मारे लात
सच है कि क्षमा व्यक्ति के व्यक्तित्व का एक बहुत ही सुन्दर पहलू है किन्तु आखिर क्षमा मांगने वाला इसका वास्तव में हकदार भी है कि नहीं, यह तथ्य निश्चित तौर पर विचारणीय है। आजकल बड़े से बड़े अपराध के बाद सॉरी बोल देने से यह मान लिया जाता है कि अपराधी अपने अपराध से मुक्त हो गया। किन्तु क्या उस अपराध की वजह से पीड़ित व्यक्ति वास्तव में उस अपराधी को क्षमा कर पाता है? उससे भी बड़ा प्रश्न है कि क्या उसे उस अपराधी को क्षमा कर देना चाहिए ?
अगर अपराधी ने वह अपराध भूलवश या पहली बार किया है तब तो एक बार उसे अपराध की डिग्री के आधार पर क्षमायोग्य माना भी जा सकता है किन्तु उसका क्या करें जो हर बार एक ही गलती करता है और फिर सॉरी बोल कर अगली गलती के लिए तैयार हो जाता है? दुर्भाग्य से ऐसे लोगों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिल रही है। जैसे जैसे आंखों का पानी मरता जा रहा है वैसे वैसे संवेदनहीन लापरवाही भी विकराल रूप लेती जा रही है। अगर किसी ने गलती पकड़ ली और टोक दिया तो सॉरी बोल देते हैं और चुपचाप सह गया तो किसको पड़ी है कि गलती को गलती मान ले। कुछ केस तो ऐसे भी हैं जो किसी भी परिस्थिति में मानने को ही तैयार नहीं कि उनसे कोई ग़लती भी हो सकती है। ऐसे लोग खुद की गलतियां तो मानने से मना कर ही देते हैं लेकिन दूसरों की गलती का विस्तृत प्रसारण करने से पीछे भी नहीं हटते।
कहते हैं कि इंसान गलतियों का पुतला होता है और अपनी की गई गलतियों से ही जीवन का सबक सीखता है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि वह उस सबक से भविष्य में कितनी गलतियां सुधार पाता है? क्या गलती करके सीखने के लिए जीवन बहुत छोटा नहीं है? गलती सबसे होती है और सॉरी के प्रादुर्भाव के साथ ही उसके प्रयोग में कभी कोई कंजूसी भी नहीं हुई है। वो सॉरी अगर वास्तव में दिल की कचोट बनकर बाहर निकली है तो उससे बढ़कर पश्चाताप दूसरा नहीं होगा। अगर वही सॉरी सिर्फ शब्दों में औपचारिकता पूरा करने के लिए बोली गई है तो बेहतर है कि वो औपचारिकता न ही निभाई जाए। वैसे आजकल के दौर में आम हो या खास, अब सॉरी अक्सर औपचारिक ही दिखती है। यहां तक कि न्यायालयों में भी आज सॉरी बोलकर कल फिर वही गलती दोहराई जाती है और परसों उसी के लिए एक बार फिर सॉरी बोल दिया जाता है।
यह औपचारिकता निभाने की प्रवृत्ति वास्तव में बड़ी घातक है और समाज की प्रथम पाठशाला को इस विषय पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। बच्चों को समाज की धारा समझाने के साथ ही जरूरतमंदों के प्रति संवेदना का पाठ पढ़ाना भी बहुत जरूरी है। नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों के साथ साथ एक व्यक्ति के रूप में संपूर्ण विकास पर विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
और अगर आपमें से कोई भी व्यक्ति मेरी बातों से असहमत है तो उसकी असहमति के अधिकार की रक्षा करते हुए मेरा बस यही कहना है, भाई मुझे माफ़ कर देना 😊
वाह इतने बेहतरीन तरीके से माफी मांगने पर व्याख्यान किए हैं। सच में बहुत ही सराहनीय है, यह आपका पोस्ट।
👏👏👏
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सादर धन्यवाद 🙏
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