- तेल की राजनीति – संकट में वैश्विक शांति
- अमेरिका – ईरान तनातनी
- अमेरिका द्वारा मध्यपूर्व में पैट्रियट मिसाइलों और युद्धपोतों की तैनाती
- अमेरिका द्वारा ईरान पर चौतरफा प्रतिबंध जिसके तहत वह किसी भी देश को ईरान के साथ व्यापार नहीं करने दे रहा है
- अमेरिका द्वारा ईरान का Revolutionary Guard Core (IRGC) वैश्विक आतंकी संगठन घोषित
- ईरान की तेल बेचने से रोकने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी
- ईरान का कहना है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध गैरकानूनी हैं और उसके पास जवाब देने के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं जिसमें परमाणु अप्रसार संधि से अलग होना भी शामिल है
- रिश्तों में खटास का कारण
- अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ईरान समेत 6 देशों के साथ हुई परमाणु संधि से इसलिए बाहर आ जाना क्योंकि वह पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में हुई इस संधि से “खुश” नहीं थे
- साथ ही दुनिया के अन्य देशों को धमकी दी गई कि अगर कोई देश ईरान के साथ व्यापार करेगा तो वह अमेरिका के साथ कारोबारी संबंध नहीं रख पाएगा
- नतीजा यह हुआ कि ईरान पर अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के मतभेद खुलकर सामने आ गए।
- यूरोपियन यूनियन ने ईरान के साथ परमाणु संधि को बचाने की कोशिश की लेकिन ट्रंप नहीं माने
- अब अमेरिका वार्सोवा में मध्य–पूर्व पर एक सम्मेलन करा रहा है और चाहता है कि ईरान विरोधी गठजोड़ में इजराइल, सउदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के साथ यूरोपीय यूनियन भी एकमत से शामिल हो जाए
- इस प्रकार ईरान एक बार फिर संकटग्रस्त है और ट्रंप प्रशासन को उम्मीद है कि इस तरह ईरान को घेरकर वह उसे एक नई संधि के लिए राजी कर लेंगे जिसकी जद में ईरान के परमाणु कार्यक्रम के साथ – साथ उसका बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम भी होगा
- ईरान पर असर
- ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के फलस्वरुप ईरान की अर्थव्यवस्था वर्षों तक बुरी तरह प्रभावित रही है
- वर्ष 2015 में राष्ट्रपति हसन रुहानी ने इन प्रतिबंधों को हटाने के बदले ईरान की परमाणु गतिविधियों को सीमित करने के लिए अमेरिका एवं पांच अन्य देशों के साथ एक संधि पर सहमति जताई थी
- सहमति लागू होने के बाद ईरान की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटी और GDP 12.3 प्रतिशत तक बढ़ गई लेकिन नए सिरे से अमेरिका द्वारा आरोपित प्रतिबंधित ने GDP को एक बार फिर गिरा दिया है
- भारत सहित दुनिया पर असर
- अमेरिका ने ईरान से कच्चे तेल के आयात के लिए भारत समेत आठ देशों को जो छूट प्रदान की थी उसकी समय सीमा 2 मई को समाप्त हो चुकी है
- अब भारत ईरान से तेल नहीं खरीद सकेगा। भारत ईरान से तेल खरीदने वाले देशों में चीन के बाद दूसरे नंबर पर है
- विशेषज्ञों के अनुसार इससे दोनों देशों के रिश्ते में तो कोई असर नहीं पड़ेगा किन्तु अगर कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आता है तो इसका असर अवश्य पड़ेगा और सबसे पहले रुपए की कीमत गिरेगी।
- ज्ञातव्य हो कि भारत और ईरान के बीच तेल की खरीद के मामले में विनिमय की मुद्रा डॉलर की जगह रुपया है
- अमेरिका – ईरान तनातनी
- पाकिस्तान को 42 हजार करोड़ देगा IMF
- आर्थिक संकट से गुजर रहे पाकिस्तान को तीन साल में 6 अरब डॉलर की मदद देने के लिए सहमत हालांकि इस सहमति को वाशिंगटन स्थित IMF के निदेशक मंडल की मंजूरी अभी बाकी है
- IMF के अनुसार इस सहमति का उद्देश्य घरेलू और बाहरी असंतुलन को कम करने के साथ ही विकास में रुकावट को दूर करना, पारदर्शिता को बढ़ाना और सामाजिक खर्चों में वृद्धि करके मजबूत और अधिक समावेशी विकास के लिए पाकिस्तान को तैयार करना है
- 20 साल बाद 1.5 करोड़ लोगों को होगी कीमोथेरेपी की जरुरत
- प्रतिष्ठित लैंसेट आंकोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक 2040 तक हर साल 1.5 करोड़ से अधिक लोगों को कीमोथेरेपी की जरुरत होगी
- 2018 से 2040 तक हर साल कीमोथेरेपी की आवश्यकता वाले रोगियों की संख्या वैश्विक स्तर पर 53 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 98 लाख से बढ़कर 1.5 करोड़ हो जाएगी
- निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कैंसर रोगियों की बढ़ती संख्या का इलाज करने के लिए लगभग एक लाख कैंसर चिकित्सकों की भी जरुरत होगी
- 2018 तक कीमोथेरेपी की जरुरत वाले मरीजों के इलाज के लिए 65000 डॉक्टरों की जरुरत थी
- 2040 तक 1.5 करोड़ रोगियों में से 1 करोड़ निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हो्ंगे तथा अतिरिक्त 52 लाख लोगों में से 75 प्रतिशत इन्हीं देशों से होंगे
- कीमोथेरेपी– कैंसर के उपचार का एक कारगर तरीका
- शरीर में कोशिकओं की अनियंत्रित वृद्धि ही कैंसर है
- कोशिकाओं के इसी अनियमित विकास को रोकने के लिए पीड़ित को कोई खास दवा या दवाओं का मिश्रण दिया जाता है जो कैंसर के शुरुआती चरण में काफी प्रभावी सिद्ध होती है
- रोग की स्थिति को देखते हुए ये दवाएँ दी जाती हैं और कई बार तुरंत असर के लिए मरीज के रक्त के साथ इन्हें शरीर में भेजा जाता है
- पूर्वी अफ्रीका, मध्य अफ्रीका, पश्चिमी अफ्रीका तथा पश्चिमी एशिया के देशों को सर्वाधिक जरुरत
- फेफड़े के कैंसर, स्तन कैंसर और कोलेरेक्टल कैंसर के प्रकार में ज्यादा जरुरत होगी
साभार– दैनिक जागरण (राष्ट्रीय संस्करण) दिनांक 14 मई 2019