- अफगानिस्तान पर त्रिपक्षीय वार्ता में शामिल हो सकता है भारत
- अफगानिस्तान में स्थाई शांति बहाली और वहां नई व्यवस्था में तालिबान को शामिल करने को लेकर अमेरिका, रुस और चीन की अगुआई में होने वाली बातचीत में भारत भी शामिल हो सकता है
- तीनों देशों ने न सिर्फ यह माना कि अफगानिस्तान के सुरक्षित भविष्य के लिए भारत की भूमिका अहम होगी बल्कि इन देशों ने तालिबान को लेकर भारत के विचार को भी जायज ठहराया है
- अफगानिस्तान के अंदरुनी हालात से भारत के सुरक्षा हित इतने गहरे जुड़े हुए हैं कि भारतीय कूटनीति फिलहाल कोई रिस्क लेने को तैयार नहीं है और भारत उन सभी पक्षों के साथ लगातार संपर्क में है जो अफगानिस्तान में व्यवस्था परिवर्तन को लेकर विमर्श कर रहे हैं
- अफगानिस्तान में स्थाई शांति बहाली के लिए अमेरिकी नेतृत्व में तालिबान से सीधी बात हो रही है इसके अलावा अमेरिका, रुस और चीन की अगुआई में एक अन्य बातचीत हो रही है जिसका उद्देश्य अफगानिस्तान में नई व्यवस्था कायम करने से जुड़े तमाम मुद्दों को सुलझाना है
- अफगानिस्तान में भविष्य को लेकर भारत जो शर्तें रखता रहा है उसे अब व्यापक समर्थन मिल रहा है
- भारत की यह मांग कि अफगानिस्तान में स्थापित होने वाली नई व्यवस्था में हिंसा और आतंकवाद का कोई महत्व नहीं होना चाहिए, को भी व्यापक समर्थन मिलने लगा है
- अमेरिका, यूरोपीय संघ, ईरान और रुस ने भी भारत के साथ द्विपक्षीय वार्ताओं में इस मांग को जायज बताते हुए इसे अफगानिस्तान के सुरक्षित भविष्य के लिए जरुरी बताया है।
- यह पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका है क्योंकि वह लगातार कहता रहा है कि अफगानिस्तान में भारत की कोई भूमिका नहीं है
- वायुमंडल में खतरनाक स्तर पर पहुंंची कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा
- धरती के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा तेजी से बढ़ रही है और यह खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है
- अमेरिका में वैज्ञानिकों ने तापमान को बढ़ाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड के अधिकतम स्तर का पता लगाया है जिसके बाद मानव निर्मिन ग्रीनहाउस गैस के लगातार बढ़ते उत्सर्जन को लेकर चिंता और बढ़ गई है
- हवाई में मौना लोवा ऑब्जर्वेटरी ने साल 1950 के दशक से लेकर अब तक वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर का पता लगाया तथा यह शनिवार की सुबह 415.26 PPM मापा गया
- यह पहली बार है जब ऑब्जर्वेटरी ने कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 415 PPM से अधिक पाया है
- पिछले चार साल रिकॉर्ड में सबसे गर्म रहे और पेरिस समझौते तथा समस्या को लेकर जन जागरुकता के बावजूद इंसान उत्सर्जन के अपने ही रिकॉर्ड तोड़ते जा रहा है
- लगातार सिकुड़ रहा है चंद्रमा
- नासा के अंतरिक्षयान लूनर रिकॉनिसेंस आर्बिटर से प्राप्त तस्वीरों के विश्लेषण से पता चलता है कि धरती का उपग्रह चंद्रमा लगातार सिकुड़ रहा है जिससे उसकी सतह पर सिलवटें पड़ गई हैं और भूकंप आ रहे हैं। इसका कारण चंद्रमा के भीतरी हिस्से का ठंडा होना बताया जा रहा है।
- LRO अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का रोबोटिक अंतरिक्षयान है जो चंद्रमा का चक्कर लगा रहा है। इसे 18 जून 2009 को लांच किया गया था।
- वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले लाखों वर्षों के दौरान चंद्रमा लगभग 150 फीट सिकुड़ गया है
- चंद्रमा के उत्तरी ध्रुव के पास लूनर बेसिन मारे फ्रिगोरिस में दरार पड़ रही है और यह अपनी जगह खिसक रही है। चंद्रमा पर कई विशाल बेसिनों में से मारे फ्रिगोरिस एक है।
- भूगर्भीय नजरिए से इन बेसिनों को मृत माना जाता है
- हमारी धरती ही तरह चंद्रमा पर कोई टेक्टोनिक प्लेट नहीं है इसके बावजूद इस पर टेक्टोनिक गतिविधि होती है। इस गतिविधि के चलते चंद्रमा का अंदरुनी हिस्सा उस समय के मुकाबले धीरे–धीरे गर्मी खो रहा है जब करीब साढ़े चार अरब साल पहले चंद्रमा अस्तित्व में आया था।
- नासा के अंतरिक्षयान लूनर रिकॉनिसेंस आर्बिटर से प्राप्त तस्वीरों के विश्लेषण से पता चलता है कि धरती का उपग्रह चंद्रमा लगातार सिकुड़ रहा है जिससे उसकी सतह पर सिलवटें पड़ गई हैं और भूकंप आ रहे हैं। इसका कारण चंद्रमा के भीतरी हिस्से का ठंडा होना बताया जा रहा है।
साभार– दैनिक जागरण (राष्ट्रीय संस्करण) दिनांक 15 मई 2019