- कुलभूषण जाधव मामले में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसले की अहमियत
- क्या है पूरा मामला –
- 8 मई 2017 को भारत ने वियना संधि का हवाला देते हुए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में मामला शुरु किया। यह भारत का किसी भी मामले में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय जाने का पहला मामला था
- भारत ने कहा कि पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव को तीन मार्च 2016 को पकड़ा लेकिन इसकी जानकारी 25 मार्च 2016 को दी जो वियना संधि के अनुच्छेद 36(1)(बी) के तहत समय से जानकारी देने के प्रावधान का उल्लंघन है
- भारत की लगातार मांग के बावजूद जाधव को राजनयिक सहायता उपलब्ध नहीं कराई गई
- नागरिकाें के मुकदमें की सुनवाई सैन्य अदालत में कराना निर्धारित नियमों और प्रक्रियाओं का खुला उल्लंघन है। उपर से सैन्य अदालत द्वारा हिरासत में लिए गए बयान के आधार पर सजा सुना कर अंतर्राष्ट्रीय नियमों और संधियों का माखौल उड़ाया गया
- भारत ने Mutual Legal Assistance Treaty के संबंध में 20 बार आग्रह किया लेकिन पाकिस्तान ने एक बार भी जवाब नहीं दिया
- क्या है अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का निर्णय –
- पाकिस्तानी सैन्य अदालत द्वारा जाधव को सुनाई गई फांसी की सजा पर फिलहाल रोक
- वियना समझौते के अनुच्छेद 36(1)(बी) के उल्लंघन पर फटकार लगाते हुए आदेश दिया कि जाधव को भारतीय राजनयिकों से मिलने की इजाजत दी जाए
- जाधव को दी गई सजा की समीक्षा का आदेश
- पाकिस्तान के न्यायाधीश के अतिरिक्त अन्य 15 न्यायाधीशों ने एकमत से इस फैसले के पक्ष में विचार रखे जिनमें एक जज चीन का भी था
- फैसला कितना बाध्यकारी –
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 94 के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश अदालत के उस फैसले को मानेंगे जिसमें वह स्वयं पक्षकार हैं।
- फैसला अंतिम होगा और इस पर कोई भी अपील नहीं की जा सकेगी हालांकि फैसले के किसी वाक्य या शब्द के अर्थ पर असमंजस की स्थिति में संबंधित पक्ष अदालत में उसकी व्याख्या का आवेदन कर सकता है
- उल्लंघन की स्थिति में विकल्प –
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान पर फैसले को लागू करने का दबाव बनाया जा सकता है हालांकि यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि किसी वीटो शक्ति प्राप्त देश द्वारा मामले में अपने वीटो के अधिकार का प्रयोग न कर दिया जाए
- 1986 में निकारागुआ ने अमेरिका पर आराेप लगाते हुए मामला दायर किया था कि अमेरिका ने एक विद्रोही संगठन की मदद करते हुए उसके खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ रखा है। इस मामले में निकारागुआ की जीत हुई थी हालांकि अमेरिका ने सुरक्षा परिषद में वीटो का प्रयोग करते हुए इस फैसले को मानने से इंकार कर दिया था
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान पर फैसले को लागू करने का दबाव बनाया जा सकता है हालांकि यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि किसी वीटो शक्ति प्राप्त देश द्वारा मामले में अपने वीटो के अधिकार का प्रयोग न कर दिया जाए
- क्या है अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय –
- संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख न्यायिक संस्था
- जून 1945 में गठित और अप्रैल 1946 से कार्यरत
- मुख्यालय – हेग (नीदरलैंड्स)
- संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुख संगठनों में से एकमात्र संगठन जिसका मुख्यालय न्यूयार्क में नहीं है
- क्या है पूरा मामला –
- नियुक्ति –
- यूरीपीय कमीशन की नई अध्यक्ष – उर्सुला वाॅन डेर लेयेन
- जर्मनी की पूर्व रक्षामंत्री
- इस पद पर नियुक्त पहली महिला
- 1 नवंबर से कार्यभार ग्रहण करेंगी
- लॉर्ड जंकर की जगह लेंगी
- गत 50 साल में जर्मनी से इस पद पर पहली नियुक्ति
- यूरीपीय कमीशन की नई अध्यक्ष – उर्सुला वाॅन डेर लेयेन
- पानी से आर्सेनिक और आयरन दूर करने के लिए सस्ता फिल्टर
- तेजपुर यूनिवर्सिटी (असम) के रॉबिन कुमार दत्ता के नेतृत्व वाली टीम द्वारा बनाए गए फिल्टर “अर्सिरॉन नीलोगन” में 99.9 प्रतिशत तक आर्सेनिक संदूषण को छानने की क्षमता
- क्या है आर्सेनिक –
- पृथ्वी की सतह में मौजूद एक ऐसा घटक जो पर्यावरण में भी घुला रहता है तथा बारिश के बाद जमीन में बैठकर पानी के साथ भूमिगत जल में मिल जाता है
- शरीर के लिए अकार्बनिक आर्सेनिक सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं तथा लंबे समय तक शारीरिक संपर्क में रहने पर व्यक्ति कैंसर जैसी गंभीर बीमरियों की चपेट में आ सकता है
- भारत में असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार सहित अनेक राज्य आर्सेनिक की समस्या से ग्रस्त हैं
- क्या है आर्सेनिक –
- फिल्टर की कार्यप्रणाली –
- एक साधारण प्रक्रिया के तहत पानी के ड्रम में ऐसी स्थिति पैदा कर दी जाती है जो आर्सेनिक को पानी से अलग कर देती है
- इसके लिए फिल्टर में सोडा तथा पोटैशियम परमैग्नेट का प्रयोग किया जाता है जो पानी से लौह तत्वों और आर्सेनिक को अलग कर देते हैं
- 20 लीटर पानी के लिए दो ग्राम खाने का सोडा, पोटैशियम परमैगनेट की 6 बूंदें तथा दो मिली फेरिक क्लोराइड पर्याप्त है
- तेजपुर यूनिवर्सिटी (असम) के रॉबिन कुमार दत्ता के नेतृत्व वाली टीम द्वारा बनाए गए फिल्टर “अर्सिरॉन नीलोगन” में 99.9 प्रतिशत तक आर्सेनिक संदूषण को छानने की क्षमता
- प्लास्टिक कचरे से उर्जा का निर्माण
- ब्रिटेन की स्वानसी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी विधि की खोज की है जिसकी मदद से प्लास्टिक को रिसाइकिल करके उच्च क्षमता वाले तत्व जैसे – कार्बन नैनोट्यूब्स बनाए जा सकते हैं जिनके माध्यम से उर्जा उत्पन्न करने के साथ ही प्लास्टिक कचरे से भी छुटकारा मिल सकता है
- शोधकर्ताओं के अनुसार प्लास्टिक कई प्रकार का होता है और उसके कुछ हिस्से को ही रिसाइकिल किया जा सकता है
- “कार्बन रिसर्च” नामक पत्रिका में छपे शोध के अनुसार सभी तरह के प्लास्टिक कार्बन, हाइड्रोजन और कई बार ऑक्सीजन के मिश्रण से बने होते हैं। कई बार इनके अनुपात में हेरफेर कर विशिष्ट प्रकार के प्लास्टिक बनाए जाते हैं। प्लास्टिक को उसके अवयवों में फिर से तोड़कर उसे रिसाइकिल कर कार्बन नैनोट्यूब जैसी उच्च स्तरीय सामग्री का निर्माण किया जा सकता है
- क्या होता है कार्बन नैनोट्यूब –
- ये अद्भुत भौतिक गुण वाले छोटे अणु होते हैं जिनकी संरचना बेलनाकार लोहे की जाली की तरह होती है
- इनमें कार्बन के अणुओं का व्यवस्थित क्रम उष्मा और उर्जा दोनों उत्पन्न कर सकता है।
- नैनोट्यूब का उपयोग Touchscreen Display, लचीले Electronics Fabric, 5जी नेटवर्क के लिए एंटीना आदि के निर्माण के लिए किया जाता है
- अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने जूनो अंतरिक्ष यान पर बिजली के झटके रोकने के लिए भी नैनोट्यूब का प्रयोग किया था
- उर्जा निर्माण की प्रक्रिया –
- प्रयोग के दौरान आसानी से रिसाइकिन न की जा सकने वाली दैनिक प्रयोग में लाई जाने वाली प्लास्टिक का प्रयोग
- सबसे पहले प्लास्टिक से कार्बन को अलग करके कार्बन परमाणुओं का उपयोग कर नैनोट्यूब का निर्माण किया गया
- अपने छोटे से मॉडल में शोधकर्ताओं ने उस नैनोट्यूब के माध्यम से बल्ब जलाकर भी दिखाया
- शोधकर्ताओं के अनुसार नैनोट्यूब के जरिए बिजली के केबलों की overheating और खराब होने की समस्या से भी निजात मिल सकती है
साभार – दैनिक जागरण (राष्ट्रीय संस्करण) दिनांक 18 जुलाई 2019
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