सिगरेट के कुकर्म – सेहत के साथ धरती के लिए भी खतरा
एक दिन किसी ने मुझसे सवाल किया कि क्या आप Smoking करते हैं। मेरे ना कहते ही उन्होंने दोबारा सवाल किया कि तुम इसी दुनिया में रहते हो या किसी दूसरे गोले से आए हो!!!! मैंने मुस्कराते हुए जवाब दिया कि सदियों पुरानी परंपरा के साक्षी इस देश में सिगरेट के आगमन का वर्ष बता दो और उस वर्ष की तुलना हमारे गोले की उम्र से करके देखो तो पता चलेगा कि सिगरेट के जन्म से पहले भी इस गोले पर लोगाें का वास था और आज भी मेरे जैसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो धूम्रपान नहीं करते।
मुझे पहले से पता था कि मेरे इस प्रश्न का जवाब उनके पास नहीं है लेकिन मुझे इस सच का भी आभास है कि इस दुनिया में सिगरेट के धुंएं में गम या रोजमर्रा के तनाव को उड़ाने की सोच रखने वालों की कोई कमी नहीं है। बॉलीवुड का एक अत्यंत लोकप्रिय गाना भी इस मामले में धड़ल्ले से सुनाया जाता है – मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुंएं में उड़ाता चला गया।

अब आइए आपको एक हकीकत से रुबरु कराते हैं। धुंंएं में फिक्र को उड़ाने की सोच से भी बड़ा खतरा हम सबके सामने मुंह बाए खड़ा है और वो खतरा है हम सबके साथ – साथ हमारे इस प्यारे गोले के अस्तित्व का खतरा। यह लेख थोड़ा लंबा होने वाला है और इसलिए आपसे सादर अनुरोध है कि इस लेख को आराम से पढ़ें और पूरा पढ़ें। साथ ही इस लेख को अपने उन साथियों तक अवश्य पहुंचाएं जो आज भी धूम्रपान की लत से ग्रसित हैं। शायद इस लेख के माध्यम से हम और आप मिलकर हमारे अपने गोले और अपने लोगों के लिए कुछ बेहतर कर पाएं। तो आइए शुरु करते है इस लेख का मुख्य भाग –
एक अनुमान के तहत विश्व में 1 अरब लोग सिगरेट की लत से ग्रस्त हैं जो कुल वैश्विक जनसंख्या का लगभग 13 प्रतिशत है। ये एक अरब लोग एक साल में लगभग 6.5 लाख करोड़ सिगरेट पी जाते हैं। एक तर्क यह भी दिया जाता है कि इतनी बड़ी संख्या में जो लोग सिगरेट पीते हैं वो क्या मूर्ख हैं? बदकिस्मती से इसका जवाब इसके सवाल में ही छ्पिा हुआ है। जी हां, मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि वो लोग सच में मूर्ख हैं क्योंकि इन एक अरब लोगों में से 80 प्रतिशत लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों से आते हैं जिनका अधिकांश समय दो वक्त की रोटी जुटाने में खर्च होता है और जिन्होंने विकास का नाम तो सुना है लेकिन उसके वास्तविक स्वरुप से अभी भी कोसों दूर हैं। वो न सिर्फ अपने सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं बल्कि अपने आसपास रह रहे लोगों को भी Passive Smoker बनाकर उनकी जिंदगी को भी खतरे में डाल रहे हैं। बात यहीं पर खत्म हो जाती तो भी कुछ गनीमत थी। वास्तव में यह स्थिति अत्यधिक भयावह है जिसके बारे में प्रतिष्ठित जर्नल Eco-toxicology and Environment Safety में प्रकाशित एक अध्ययन में विस्तार से चर्चा की गई है। इस रिपोर्ट में सिगरेट के धरती और पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव की विस्तृत चर्चा की गई है। आइए आपको भी इसके कुछ महत्वपूर्ण हिस्से से रुबरु कराते हैं।
सिगरेट के बड्स की कहानी –
एक आम भ्रांति है कि सिगरेट का निचला हिस्सा (बड्स) रुई का बना होता है जो पूरी तरह से गलत है। असल में यह भाग प्लास्टिक के ही एक रुप सेल्यूलोज एसीटेट फाइबर का बना होता है। यह एक प्रकार का बायोप्लास्टिक है जो गलने में 18 महीने से लेकर कई बार दशकों तक का समय लेता है। इसके चारों तरफ कागज की परत के रुप में दिखाई देने वाली परत भी सेल्यूलोज एसीटेट से बना एक नकली रेशम होता है जिसे रेयान कहते हैं। ये फाइबर सिलाई के धागे से भी महीन होते हैं और एक बड को बनाने में लगभग बारह हजार फाइबर का प्रयोग होता है। यह सच है कि ये बड्स इस प्रकार बनाए जाते हैं कि सिगरेट के जहरीले और टार के ठोस तत्वों को कुछ हद तक रोक सकें किन्तु उससे कहीं ज्यादा नुकसान ये पर्यावरण की दुर्गति करके पहुंचाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक हर साल लगभग 4.5 लाख करोड़ बड्स सिगरेट के कश लगाने के बाद खुले में फेंक दिए जाते हैं। आइए, अब आपको एक आइना दिखाते हैं कि आपके दो मिनट के नशे की कीमत सम्पूर्ण जीव जगत को किस रुप में चुकानी पड़ रही है–
सिगरेट का पर्यावरण पर कुप्रभाव –
अंगलिया रस्किन विश्वविद्यालय के शिक्षाविदों के अध्ययन के अनुसार सिगरेट के बड्स के कारण जमीन की अंकुरण क्षमता करीब 27 प्रतिशत और पौधों की लंबाई लगभग 28 प्रतिशत तक कम हो जाती है। अब एक बात बताइए कि सिगरेट हमारा पेट तो नहीं भर सकती न? जब सारी जमीन बंजर हो जाएगी तो खाने के लिए अन्न कहां से लाओगे बॉस? अब आप ये तर्क दे सकते हैं कि इतना थोड़े न होने वाला है कि हमारे सिगरेट पीने से धरती बंजर हो जाए और भोजन न मिले तो साहब आपकी सूचना के लिए बता दूं कि कैंब्रिज शहर के विभिन्न हिस्सों से लिए गए नमूनों के आधार पर पाया गया कि प्रति वर्गमीटर 128 बड्स फैले हुए थे। इस आंकड़े की तुलना अपने और अपने आसपास धूम्रपान की आदत वाले लोगों द्वारा प्रयोग की गई सिगरेट की मात्रा से जरुर कर लीजिएगा, हकीकत अपने आप आपके सामने होगी।
एक और बात उपयोग न की गई सिगरेट भी उतनी ही खतरनाक है जितना खतरनाक प्रयुक्त सिगरेट। अधिकांश बड्स जब फेंके जाते हैं तो उसमें तंबाकू का कुछ हिस्सा जुड़ा रहता है जिससे निकलने वाला निकोटीन भी पर्यावरण को जहरीला बनाता है। मतलब अंदर जो damage हो रहा है वो तो हो ही रहा है, बाहर भी हम बर्बादी की एक शानदार पटकथा तैयार कर रहे हैं।
पेड़–पौधे ही हमारे पर्यावरण और जैव विविधता के आधार और धरोहर हैं। इनके बिना जीव जगत के अस्तित्व की कल्पना भी संभव नहीं है। हमारी आदतें इस कदर बिगड़ चुकी हैं कि हम इस धरोहर का महत्व तो समझते हैं लेकिन अपनी आदतें सुधारने को तैयार नहीं हैं। उसके बाद शिकायत की जाती है कि गर्मी बहुत है और बाहर निकलना मुश्किल होता जा रहा है। सोचिए, आज ये हालत है तो हम अपनी आने वाली पीढ़ी को विरासत में कैसा पर्यावरण देने जा रहे हैं।
तो मेरे प्यारे मित्रों और स्वजनों, मेरे आज के इस लेख का एकमात्र उद्देश्य आपको एक ऐसी सच्चाई से रुबरु कराना है जो हम सबसे प्रत्यक्ष तौर पर जुड़ी हुई है। उम्मीद करता हूं कि मेरा यह प्रयास आपको एक बार आत्मचिंतन के लिए अवश्य विवश करेगा और मुझे विश्वास है कि आप में से कुछ लोग अपने धूम्रपान की आदत को छोड़ने का एक ईमानदार प्रयास अवश्य करेंगे। इस लेख में दिए गए आंकड़े और सूचनाएं उनके वर्णित स्रोत के साथ – साथ दैनिक जागरण समाचार पत्र में इस विषय से संबंधित लेख से संकलित हैं।
आप सभी को एक सुनहरे, हरित और प्रदूषणरहित भविष्य की शुभकामनाएं। Thanks for not Smoking

Very informative article. Hope some smokers can learn a lesson from it. Keep writing. Your thoughts are flawless and gives a reason to read for many of us including me. Nice gesture.
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Thanks a lot sir
Your words give me a lot of inspiration
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बहुत अच्छी जानकारी दिया अपने सर
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धन्यवाद सर 🙏
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बहुत ही बढ़िया और लाभकारी पोस्ट है !
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बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
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welcome!
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बहुत अच्छे। लगे रहो।
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जी जरूर। धन्यवाद 😊
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✍️🙁👍
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Thankx
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Acchi jankari.
Kafi accha lga pdh k.
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बहुत बहुत धन्यवाद 😊
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उत्तम 👌
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सादर धन्यवाद 🙏
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