अमेज़न के जंगल की आग के निहितार्थ
पिछले कुछ दिनों में जिस घटना ने वैश्विक स्तर पर पर्यावरणविदों को सोचने पर विवश किया है वो है ब्राजील के अमेज़न के जंगलों में लगी भीषण और अनियंत्रित आग।
Heart of Oxygen और धरती का फेफड़ा कहे जाने वाले इन जंगलों द्वारा वैश्विक ऑक्सीजन के लगभग 20 प्रतिशत हिस्से की पूर्ति की जाती है। ऐसे में इन जंगलों में आग से न केवल पर्यावरण को गंभीर खतरा है बल्कि वैश्विक स्तर पर जीव जगत को भी अपने अस्तित्व के प्रति सचेत होने का एक अलार्म है। इस घड़ी में ब्राज़ील की वर्तमान सरकार का रुख भी कुछ सकारात्मक नहीं कहा जा सकता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जनवरी 2019 से लेकर अब तक इन जंगलों का लगभग 3 हजार वर्ग किमी से अधिक हिस्सा आग की वजह से तबाह हो चुका है। इस परिस्थिति में भी ब्राज़ील की सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण का बजट कम कर देना निश्चित रूप से संदेह के घेरे में है और किसी भी तरह से पर्यावरण हितैषी कदम नहीं कहा जा सकता है।
ब्राज़ील के राष्ट्रपति की बयानबाज़ी को सुनकर लोककथाओं में मशहूर नीरू की कहानी बरबस ही याद अा जाती है जो आग की लपट में घिरे अपने घर की चिंता न करते हुए मस्ती में तब तक बांसुरी बजाता रहा जब तक कि उसका घर जलकर राख नहीं हो गया।
समुचित संसाधनों की कमी का रोना रोने के बावजूद वैश्विक सहायता लेने से इंकार कर चुके पूर्व सैनिक एवं वर्तमान ब्राजीली राष्ट्रपति ने अब आग बुझाने के लिए सेना की मदद लेना शुरू किया है। उससे एक कदम आगे जाते हुए आर्थिक सहायता के मुद्दे पर वह फ्रांसीसी राष्ट्रपति से भी भिड़ चुके हैं। हालांकि बाद में उन्होंने अपनी पसंद के देशों से सहायता लेना स्वीकार तो किया लेकिन उसके पीछे उनकी मंशा से ज्यादा अधिक जिम्मेदार बड़े देशों का दबाव था। अपनी विफलता को छिपाने के लिए स्वयंसेवी संगठनों को दोषी ठहराने से बाज न आने वाले ब्राजीली राष्ट्रपति के बयानों के पीछे एक बड़ी साजिश की संभावना से कतई इंकार नहीं किया जा सकता।
चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वार के बढ़ने के साथ ही ब्राजील ने स्वयं को सोयाबीन और मांस के निर्यात के विकल्प के रूप में देखना शुरू कर दिया था। जैसे जैसे अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वार बढ़ता गया वैसे वैसे चीन का झुकाव सोयाबीन की खरीद के लिए ब्राजील की तरफ बढ़ता गया। बढ़ती मांग के बीच असल समस्या थी सोयाबीन उत्पादन के लिए जमीन की कमी, तो इसके लिए ब्राजील के प्रभावशाली वर्गों ने अमेज़न के जंगलों का रुख किया ताकि इन जंगलों को नष्ट करके खेती योग्य भूमि का निर्माण किया जा सके। अब तक इन जंगलों का लगभग 17 प्रतिशत हिस्सा जला कर खेतों के रूप में परिवर्तित किया जा चुका है और यह विनाश लीला अनवरत जारी है।
जीवन की लड़ाई लड़ने को विवश होते चले जा रहे प्राणी जगत के लिए इससे बड़ी परीक्षा शायद ही कभी हुई हो। एक तरफ प्राणवायु के सबसे बड़े स्रोत पर मंडरा रहे खतरे का सीधा असर जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने के रूप में अपेक्षित है तो दूसरी तरफ बहुमूल्य संसाधनों और जैव विविधता के स्थाई तौर पर नष्ट होने का भय।
पर्यावरण को पर्याप्त नुकसान पहुंचा चुका प्रकृति का सबसे समझदार जीव मानव अब आत्महत्या पर उतारू दिखने लगा है और उसकी वीभत्स क्रियाएं दिन प्रतिदिन प्रलयकारी होती चली जा रही हैं। अभी भी समय है जब विश्व समुदाय को साथ मिलकर काम करना होगा और अमेज़न की आग पर तत्काल काबू पाने के उपायों को तुरंत अपनाना होगा। ब्राजील की सरकार को भी समझना होगा कि लोगों की जान और प्रकृति के नुकसान की कीमत पर हुई अर्थव्यवस्था की प्रगति का कोई औचित्य नहीं है। ऐसे उपभोक्तावाद की क्या जरूरत जब उपभोग के लिए उपभोक्ता ही न बचे।
व्यक्तिगत तौर पर भी हर व्यक्ति को अब सतर्क हो जाने की जरूरत है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता आज की शिक्षा प्रणाली की पहली आवश्यकता बनती जा रही है। अमेज़न की आग तो वैश्विक प्रयास से ही बुझेगी लेकिन अपने आसपास की धरती की आग बुझाने में हम सब अपना योगदान तो दे ही सकते हैं। हर व्यक्ति द्वारा किया गया एक छोटा प्रयास एक बहुत बड़े परिवर्तन का आधार तैयार करने में सक्षम है। हम सबने महसूस किया है कि एक बगीचे का तापमान मैदानों तथा खेतों के तापमान से हमेशा कम रहता है। इसलिए वनों की रक्षा करें और मैदानी इलाकों में वृक्षारोपण को बढ़ावा दें।
कल को सुरक्षित करने के लिए आज का प्रयास सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है। आइए मिलकर एक प्रयास करें। जीएं और जीने दें।
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बहुत सही लिखा सर जी बिना वृक्षों के इस धरा पर जीवन असम्भव हो जाएगा
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तमिलनाडु का जल संकट अभी शुरुवात है
नहीं सुधरे तो हालात और विकट होते चले जाएंगे
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सही है
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