वैसे तो अलग अलग देशों में अलग अलग तिथियों पर हिंदी दिवस मनाया जाता है लेकिन वैश्विक स्तर पर 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के रूप में मान्यता प्रदान की गई है। पहला विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी 1975 को नागपुर में मनाया गया था जिसमें 30 देशों से 122 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था।
भारत में 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। 14 सितम्बर को ही हिंदी दिवस मनाने के पीछे कारण यह है कि 14 सितम्बर 1949 को भारत की संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया था। 14 सितम्बर 1953 को पहली बार हिंदी दिवस मनाया गया।
विडम्बना यह है कि हिंदी की सबसे अधिक उपेक्षा हिंदीभाषी लोगों द्वारा ही की जाती रही है। भारतेंदु जी ने एक स्थान पर लिखा भी है-
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
भारतेंदु हरिश्चंद्र
बिन निज भाषा- ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।
आइए जानते हैं कि देश का संविधान इस विषय में क्या कहता है –
अनुच्छेद 343. संघ की राजभाषा–
- संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
- खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था :
परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान, आदेश द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा का और भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा। - इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, संसद उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि के पश्चात, विधि द्वारा
- अंग्रेजी भाषा का, या अंकों के देवनागरी रूप का, ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएं।
संविधान निर्माताओं ने देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी भाषा को राजभाषा का दर्जा तो दे दिया लेकिन संविधान में इतने ढीले प्रावधान छोड़ दिए कि 15 साल की जगह 70 साल बीत गए लेकिन हिंदी को वह अधिकार नहीं मिल सका जिसकी वो वास्तविक हकदार थी।
भारत में सभी प्रमुख भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत संवैधानिक अधिकार प्राप्त है और देश का प्रत्येक नागरिक अपनी सुविधानुसार अपने पसंद की भाषा चुनने के लिए स्वतंत्र है। इसके लिए किसी भी नागरिक को हीन समझना अपने आप में ही हीन मानसिकता का परिचायक है।
जरूरी नहीं कि अपनी मातृभाषा में अपने विचार व्यक्त करने वाले व्यक्ति का बौद्धिक स्तर किसी भाषा विशेष के पक्षधर व्यक्ति के बौद्धिक स्तर से कम हो। इस प्रकार के दुराग्रह को त्याग कर समावेशी विचारधारा को अपनाने की आवश्यकता है।
भारत की 41 प्रतिशत जनसंख्या द्वारा बोली जाने वाली भाषा और उसके साथ साथ अन्य भारतीय भाषाएं किसी आयातित भाषा की गुलाम बन कर क्यों रह गई हैं। आखिर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति इतना दुराग्रह क्यों है?
प्रस्तुत हैं ऐसी ही सोच के कुछ प्राणियों को समर्पित चंद पंक्तियां –

आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा- ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।
भारतेंदु हरिश्चंद्र
bahut hi sundar panktiyan……..khud ko prerit karti huyee……..Apko bhi Hindi diwas ki dher saari shubhkamnaye.
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बहुत बढ़िया लेख 👌👌👌
हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं
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बहुत बहुत धन्यवाद 🤗
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संविधान के बारे जानकारी पाकर अच्छा लगा, धन्यवाद ये माहिती देने के लिए।
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🙏☺️
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हिंदी दिवस की शुभकामनाएं💐
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This is very really unique helpful information. keep it up. Thank you so much!
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बहुत सुंदर सर जी,
अंग्रेजी पढ़के जद्यपि सब गुन होत प्रवीन।
पर निज भाषा ज्ञान के रहत हीन के हीन।।
🙏😊
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यही सोच तो घातक है श्रीमान
सारा ज्ञान अंग्रेजी में ही है क्या जो प्रवीणता हासिल करने के लिए उसका होना जरूरी है
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हा विज्ञान की सभी प्रामाणिक किताबें तो अंग्रेजी में ही हैं
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तमिलनाडु के डॉक्टर्स के बारे में क्या ख्याल है आपका
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एक ऐसा राज्य जहां विज्ञान की व्यावसायिक शिक्षा भी तमिल माध्यम में उपलब्ध है
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अगर विज्ञान की शिक्षा हमे हिंदी में अनुसंधान सहित तब तो हमे अंग्रेजी को कोई आवश्यकता नहीं होगी
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समस्या उपलब्धता में केवल इस वजह से है क्योंकि किसी ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया कि अंग्रेजी में लिखे टेक्स्ट का एक प्रारूप हिंदी में भी हो सकता है
हिंदी भाषी राज्यों में 12 वीं तक हिंदी माध्यम में विज्ञान और गणित पढ़ाया जाता है और स्नातक में आते ही सब कुछ अंग्रेजी माध्यम में। अब ऐसी परिस्थिति में विद्यार्थी पहले पढ़े विज्ञान के साथ विज्ञान सीखे या फिर नए सिरे से अंग्रेजी में सीखना शुरू करे
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विज्ञान में विकास होना चाहिए चाहे वो फिर कोई भी भाषा हो अन्यथा देश का विकास असम्भव है।
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मुझे आपत्ति भाषा से नहीं है
मुझे आपत्ति इस सोच से है कि अंग्रेजी के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता
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ये सोंच तो गलत है सर। परन्तु अंग्रेजी की मजबूरी तो आपको बता ही दिया।
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मजबूरी की काट के लिए ही तमिलनाडु का उदाहरण दिया था मैंने
अगर वो कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं
अन्यथा ये खिचड़ी पकने से रोकना होगा
अगर नीतिगत रूप से आगे सिर्फ अंग्रेजी ही चलनी है तो उसे प्राथमिक स्तर से लागू किया जाए अन्यथा एक विकल्प मातृभाषा का भी दिया जाना चाहिए और उसके हिसाब से अवसंरचना तथा सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए
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मैं समर्थन करता हूं सर जी आपके बात का। अगर हमको सम्पूर्ण विज्ञान का ज्ञान हिंदी में उपलब्ध होता है।तब तो सोने में सुहागा है😊
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12वी तक हिंदी और स्नातक में जाते ही अंग्रेजी
ऐसी भी क्या मजबूरी है कि लेखन और अध्यापन कार्य 12वी के बाद हिंदी में पाप बन जाता है
ऐसा विद्यार्थी रट कर नंबर तो पा जाता है लेकिन वह अनुसंधान और नौकरी के लिए कितना योग्य होता है ये सबको पता है
फिर हम सब मिलकर कोसते हैं कि देश में योग्यता का अभाव है और हम सिर्फ नकल कर सकते हैं अपना कुछ नहीं बना सकते वगैरह वगैरह
फिर तुलना करते हैं कि अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई अच्छी होती है क्योंकि उसके छात्र अच्छा कर रहे हैं लेकिन ये किसी को नहीं दिखता कि उन छात्रों को भाषा परिवर्तन की समस्या से दो चार नहीं होना पड़ता
जब समस्या नींव में ही हो तो इमारत बहुमंजिला कैसे बन सकती है
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बिल्कुल सही सर👌
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सबसे बड़ी समस्या तो यही है कि विज्ञान की सभी किताबें हिंदी में उलब्ध नहीं होती। हमे शिक्षक भी इंग्लिश माध्यम में पढ़ते हैं। तब तो अंग्रेजी की मजबूरी हो जाती है। क्योंकि बिना विज्ञान के तो विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती
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मैं स्वयं स्नातक स्तर तक विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूं और इसके अलावा मैंने स्नातक स्तर तक की अंग्रेजी की पुस्तकों का समुचित अध्ययन भी किया है। मैंने अच्छे छात्रों को भी माध्यम परिवर्तन की वजह से पिछड़ते और संघर्ष करते हुए देखा है। वो समझ ही नहीं पाता कि उसने पहले जो पढ़ा उसको नए माध्यम में corelate कैसे करे
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बिल्कुल सही सर जी, तब तो आप सभी समस्याओं को बहुत अच्छे से जानते हैं।
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सर जी आप कहाँ से हैं?
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फिलहाल तो इतना ही कहूंगा कि भारत से हूं और मेरी मातृभाषा हिंदी है। संभवतः आपका और मेरा प्रांत एक ही है
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उत्तर प्रदेश से हैं आप
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जी हां
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ये तो बहुत खुशी की बात है😊
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🙏
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😊🙏
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आपका कहां से हैं श्रीमान जी
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मैं जिला चित्रकूट धाम से उ.प्र. से
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मगर प्राणप्रिया है मुझे मातृभाषा ।मेरी मातृभाषा मेरी मातृभाषा
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🙏☺️
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