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एक गर्म दुपहरी छांव रहित, प्यासा पथिक और धूप कठिन
जलती काली सड़कों पर कहां, मिलते पानी और छांव कहीं
सब कुछ कृत्रिम घर के अंदर, बाहर की हवा के शत्रु घने
जब रार प्रकृति से ठान लिया, फिर रोगमुक्त सब कैसे बनें
अब भी कुछ समय है हाथों में, गर सुधर गए तो मुमकिन है
कुछ वृक्ष लगें, हो जल संचय, ना भूल कि जल ही जीवन है
तपती धरती भी बने शीतल, गर छांव मिले एक बूटे की
वरना कोई मरण को टाल सके, नहीं बात किसी के बूते की
© अरुण अर्पण
Image credit – Google images
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Kya bat hai nice poyem
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Thanks 😊
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बहुत सुंदर सर जी, जल संरक्षण और प्रकृति की सुरक्षा हर मानव का कर्तव्य होना चाहिए।
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धन्यवाद श्रीमान जी 🙏
इस सोच को धरातल पर उतारने का समय अा गया है वरना रसातल में भी जगह नहीं मिलेगी
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बिल्कुल सही सर जी 🙏😊
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