चालान का “चालान”
पिछले दिनों दिल्ली के प्रगति मैदान में पुस्तक मेला आयोजित किया गया था। मेले के अंतिम दिन मैं अपने मित्र के साथ एक ऑटो में बैठकर जा रहा था। ऑटो वाले भाई साहब अपनी धुन में ऑटो सरपट दौड़ाए चले जा रहे थे। तभी उनकी नजर थोड़ी दूरी पर खड़े सफेद वर्दीधारी ट्रैफिक पुलिस के जवानों पर पड़ी और उन्होंने रेड लाइट पर ऑटो रोक दिया। साथ ही उन जवानों के लिए कुछ अपशब्द भी उनके मुंह से निकले। मेरे मित्र ने उनको उसी समय टोका और पूछा कि आप उन्हें गाली क्यों दे रहे हैं तो सामने जो तस्वीर उभरी वो कहीं से भी अप्रत्याशित नहीं थी।
इस बात का गुस्सा तो था ही कि चालान की दर कई गुना बढ़ गई लेकिन सबसे ज्यादा गुस्सा इस बात का था कि कुछ विशेष प्रवृत्ति के जवानों द्वारा “गरीब” वाहन चालकों से चालान के बदले वसूला जाने वाला “सुविधा शुल्क” भी उसी अनुपात में बढ़ गया। वरना कहां बंद मुट्ठी का बंद मुट्ठी से आदान प्रदान हो जाया करता था और कहां अब बाकायदा चालान स्लिप पकड़ाने की बात की जाती है।

हैरानी इस बात की है कि ऐसे लोगों में एक बड़ी संख्या उनकी भी है जो देश में खाड़ी देशों के समान कठोर कानून की मांग करते हैं। अंग भंग और मृत्युदंड जैसे कानून मांगने वालों के सीने पर आर्थिक दंड के लिए सांप लोटना भी हैरान करने वाला है। आखिर हमारे अपने ही सिद्धांत खुद अपने लिए क्यों स्वीकार्य नहीं हैं?
आइए, थोड़ी नजर उन तथ्यों पर भी डाल लेते हैं जिनकी वजह से इस कठोर कानून की जरूरत पड़ी –
आम तौर पर देखा गया है कि ट्रैफिक नियमों को ताक पर रखकर ड्राइविंग की जाती रही है। अक्सर ही समाचार माध्यमों में सड़क दुर्घटना की खबरें आती रहती हैं जिनमें से अधिकतर ट्रैफिक नियमों की अनदेखी की वजह से होती हैं।

कई लोगों ने तर्क दिया कि सरकार चालान काटने की जगह हेलमेट क्यों नहीं बांट देती। ऐसे लोगों से एक ही सवाल है कि सरकार ये परोपकार किस खुशी में करे? इसलिए कि 70 हजार की गाड़ी खरीदने वाला इतना गरीब है कि हजार रुपए का हेलमेट नहीं ले सकता या इसलिए कि वो दुर्घटना में अपना सिर तुड़वाना ज्यादा पसंद करेगा लेकिन हेलमेट नहीं खरीदेगा। या फिर इसलिए कि उसके दुर्घटना में जान गंवाने से सबसे ज्यादा फर्क सरकारी तंत्र को ही पड़ेगा?

कुछ तर्क ऐसे भी हैं कि हेलमेट पहनने से बाल उड़ जाते हैं। साहब जी, बाल हेलमेट पहनने से नहीं बल्कि गंदे हेलमेट पहनने, गलत स्वास्थ्य आदतें, अनियमित दिनचर्या और उचित देखभाल की कमी से उड़ते हैं।

शायद आपको पहले से पता होगा कि सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वाले लोगों में से अधिकांश मोटरसाइकिल सवार होते हैं और उनमें से सबसे बड़ी संख्या उनकी होती है जो बिना हेलमेट पहने गाड़ी चलाते हैं।

एम्बुलेंस और अन्य इमरजेंसी सेवाओं को रास्ता देने का कानून तो बहुत पहले से है। बल्कि सड़क पर सबसे पहला हक ही इन वाहनों का है। लेकिन ऐसा भी देखा गया है कि किसी नेता को रास्ता देने के लिए एम्बुलेंस रोक दी गई और किसी को जान से हाथ धोना पड़ा या जाम ऐसा लगा कि फायर ब्रिगेड के पहुंचने से पहले किसी की जिंदगी भर की कमाई जलकर स्वाहा हो गई।

चोरी की गाड़ियों तथा बिना कागजात के वाहनों को अक्सर गांवों के हवाले कर दिया जाता रहा है। जब ऐसे वाहन किसी की जान लेते हैं तो उस बेचारे को तो कहीं से मुआवजा भी नहीं मिल पाता।

धुंआ उगलती गाड़ियों की भी सड़कों पर कोई कमी नहीं है।
एक चिंताजनक ट्रेंड और है कि नाबालिग बच्चों के हाथ मोटर वाहनों की चाभी देकर मां बाप खुश हो जाते हैं उनका 14 साल का बेटा गाड़ी चलाना सीख गया। एक बार बच्चा गाड़ी चलाना सीख गया तो अब उसकी रफ़्तार को रोकने वाला कोई भी नहीं है। लेकिन लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि मोटर वाहन पर सवार उनका वही बच्चा वास्तव में चलती फिरती मौत का सामान है और किसी भी पल खुद की या किसी दूसरे व्यक्ति की मौत का कारण बन सकता है।

एक बार दुर्गा पूजा के अवसर पर एक दृश्य ऐसा भी सामने आया कि एक ही मोटरसाइकिल पर 5 लोग सवार होकर जा रहे थे। जरा कल्पना कीजिए कि रात के अंधेरे में एक छोटा सा गड्ढा उन्हें रसातल में पहुंचा देने में सक्षम है कि नहीं। ऐसी ही कुछ स्थिति सार्वजनिक निजी वाहनों की भी है। लटक कर या छत पर बैठ कर चलने वालों की भी कोई कमी नहीं है। यही हालत सामान धोने वाले वाहनों की भी है।

चौपाया वाहनों को चलाते वक्त जो चीज सबसे बुरी लगती है वो है सीट बेल्ट बांधना। किसी को कपड़े खराब होने की चिंता तो किसी को अनावश्यक बंधन का अहसास। तभी एक जोरदार झटका, सिर स्टेयरिंग पर और जिंदगी का राम नाम सत्य। क्या आप जानते हैं कि सीट बेल्ट की वजह से इस तरह मुफ्त में गंवाई गई अनेकों जिंदगियां बचाई जा सकती हैं?

High end bikes पर स्टंट के चक्कर में न जाने कितने युवा अपनी जान गंवा देते हैं। वो खुद तो टुकड़ों में दुनिया से रुखसत हो जाते हैं लेकिन उनके परिवार की क्या हालत होती है, यह भी किसी से छिपा नहीं है।

प्रदूषण जांच का खर्च 150 रुपए और रिश्वत 50 या 100 रुपए। कौन जाए प्रदूषण की जांच कराने? जब कोई पकड़ेगा तब देखेंगे। इस सोच ने न जाने कितनी बड़ी मात्रा में देश को कार्बन क्रेडिट का चूना लगाया है। कार्बन क्रेडिट के इतर भी प्रदूषित वातावरण ने अनगिनत बीमारियों को जन्म देने का काम किया है। ऐसा नहीं है कि प्रदूषण की जांच करा लेने से आपकी गाड़ी शुद्ध धुआ फेंकना शुरू कर देगी लेकिन हर गाड़ी के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ मानक तय किए गए हैं और हवा की गुणवत्ता के भी अपने मानक निश्चित हैं। तो आपके वाहन के इन मानकों पर खरा रहने की स्थिति में कम से कम particulate matter की मात्रा को तो अवश्य नियंत्रित किया जा सकता है। दिल्ली और अन्य शहरों की स्थिति से तो आप बिल्कुल भी अनभिज्ञ नहीं हैं न।

पहले के कानून में भी जुर्माने का भरपूर प्रावधान था लेकिन वो दरें इतनी कम थीं कि लोग वाहन के लिए आवश्यक प्रक्रियाओं पर किए गए खर्च की अपेक्षा जुर्माने या रिश्वत पर किए गए खर्च को अधिक सुविधाजनक मानने लगे थे। इस तंत्र ने न केवल एक कठोर कानून की जरूरत पर बल दिया बल्कि एक ऐसा भ्रष्ट तंत्र भी विकसित किया जो अब सबके लिए आत्मघाती सिद्ध हो रहा है। कार और बस चालकों का हेलमेट के लिए चालान इसी तंत्र की देन है।

ट्रैफिक नियमों के साथ एक बहुत बड़ी संरचना जुड़ी हुई है जिसमें जीवन रक्षा प्रणाली, पर्यावरण, उत्तम परिवहन तंत्र, जनसुविधा और लोकहित के अनेकों मुद्दे एक साथ समाहित होते हैं। नया कानून वास्तव में जरूरत से ज्यादा कठोर है लेकिन इसके लिए सबसे बड़े जिम्मेदार तो आखिर हम सब ही हैं।
अब चूंकि जुर्माने की दरें इतनी ज्यादा बढ़ा दी गई हैं कि कई बार तो जुर्माने की रकम में थोड़ा और मिलाकर एक नई गाड़ी ली जा सकती है। अब हम भारत के लोग भला इतनी रकम क्यों खर्च करें तो आइए, अब किसी नई बहानेबाजी की जगह थोड़ी जिम्मेदारी दिखाएं और चालान को अपने रास्ते से चलता करें। जान की सबसे ज्यादा फिक्र करने वाले मानव को आखिर सड़क पर अपनी जान की चिंता कैसे नहीं होती। अब पैसा आपकी जान से तो बड़ा नहीं है न।

बेहतर यही है कि हम सब अपने वाहनों के कागजात हमेशा अद्यतन रखें और किसी भी लापरवाही की स्थिति में यह जरूर याद रखें कि कुछ लोग हैं जिनकी मुस्कान के कारण सिर्फ आप हैं और उन्हें आपकी घर पहुंचने की जल्दी से ज्यादा आपके जिंदा और सही सलामत घर पहुंचने की प्रतीक्षा है।
दुर्घटना से देर भली
Drive safe, stay safe
दुनिया की कोई भी ताकत आपका चालान तब तक नहीं काट सकती, जब तक आप खुद उन्हें मौका न दें।

आइए, चालान का “चालान” काटें 😊
© अरुण अर्पण
Disclaimer – images and videos used in this article are just symbolic and downloaded from open source internet. Their credit always remains with their originator. Any resemblance with any incident or a person is not intentional and that would be just a coincidence.
नियम अनेक हैं मगर मानता कौन है। अगर सख्ती बरती जाए तो बोलने की आजादी कुछ भी शोर होने लगता है मगर सच्चाई है वो कानून ही क्या जो कठोर ना हो।
बहुत सारे बिन्दुओ पर तथ्यपरक प्रकाश डाला है। खूबसूरत और सही लिखा है।
LikeLiked by 2 people
बहुत बहुत धन्यवाद
यह एक ऐसा विषय है जिस पर लिखने के लिए बहुत कुछ है। सारे बिंदुओं को समाहित करने पर लेख बहुत लंबा हो जाता और इसकी प्रासंगिकता नहीं रह जाती। इसी वजह से सिर्फ उन्हीं बिंदुओं को शामिल किया है जो आम जनता से सबसे अधिक और सीधा सम्बन्ध रखते हैं और सड़क हादसों के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं
प्रोत्साहन के लिए सादर आभार
LikeLiked by 1 person
Batter late then naver..♥️👌
LikeLiked by 2 people
Yeah
Better late than never
Thanks 😊
LikeLiked by 1 person
सही लिखा सर जी, आज परेशानी अवश्य हो रही है परन्तु चलन के डर से अब सभी ट्रैफिक नियमों का पालन करेंगे।
LikeLiked by 1 person
उम्मीद तो यही है 😊
LikeLiked by 1 person