एक दिवाली ऐसी भी
हर साल दीवाली आती है, सब लोग मनाने जाते हैं
कुछ छुट्टी पर घर आते हैं, उत्साह से घर को सजाते हैं
मचती है धूम रंगोली की, सजती है प्लेट मिठाई की
रोशन होते हैं सब घर द्वार, उठते हैं पटाखों के गुबार
सब हंसते हैं, सब गाते हैं, खुशियों से सजता मन-आगार
लेकिन खुशकिस्मत नहीं हैं सब, करते सब इच्छाएं परित्याग
छुट्टी नहीं मिलती किसी को तो, है साधन नहीं किसी के पास
सरहद निगरानी करता कोई, कोई सोच सोच रह जाता है
कोई खुश होता खुशहाली देख, कोई खुशी के लिए तरसता है
दोनों की हालत एक सी ही, त्यौहार की चाह रखें दोनों
है एक सिपाही सरहद पर, दूजा गरीब जन का प्रकार
सैनिक जीवन है कठिन किन्तु, क्या करे गरीब जो सहे अभाव
सैनिक करता खुद को अर्पण, सरहद, समाज, परिवार प्रति
क्या करे गरीब, ढूंढे वो कहां, खुशियों के पल, बिन अर्थ भाव
दोनों ही समझाते खुद को, दोनों समझौता करते हैं
दोनों चाहें खुशियों के पल, पर क्या सचमुच पा जाते हैं ?
करता है विनय उनसे “अरुण”, कोई कमी नहीं जिनके घर में
कोशिश ये करें नहीं कोई रहे, दीवाली पर अंधेरे तले
जिनके घर हैं सरहद के पास, या किसी सैनिक के आसपास
बस एक काम वो भी कर लें, दे दें शुभकामनाएं अपार
दोनों ही खुश हो जाएंगे, मैत्री बढ़ती व्यवहारों से
घर साफ करें दीवाली पर, मन साफ करें मानवता पर
दे उन्हें खुशी जिन्हें प्राप्त नहीं, खुश हों खुद भी और स्वस्थ रहें
करता हूं कामना ईश्वर से, सबका जीवन खुशहाल रहे
मानस का कुसुम ना मुरझाए, मानवता कभी न मिट पाए
गर हो संभव तो करें सुविचार, हो स्वच्छ दीवाली हरित स्वस्थ
छाए चहुंओर खुशी और प्रकाश, जीवन आभा का शुभ प्रकाश
कर दें रोशन सारा जहां, शुभ दिवाली पुनः एक बार
© अरुण अर्पण
आपको भी बहुत बहुत शुभकामनाएं
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बहुत बहुत धन्यवाद और ढेर सारा प्यार
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Bahut pyari kavita hai. Mann ko chu gayi….
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Thanks sir 😊
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