मौत और इश्क़ के बाद “जिंदगी”
दिन रात जिए जिनकी खातिर, तम-गम का अक्स मिटाने को
रुखसत जो हुआ उस दुनिया से, जुट गए मेरा नक्श मिटाने को
मेरा यूं ही उठ कर चल देने का, गम ना दिखा उन नज़रों में
कुछ फूल उड़ा कर मेरी तरफ, वो खोते गए कुछ गजरों में
झूठे वादों की बड़ी चादर से, ढंक मुझको गुमराह किया
राख मेरी जलती ही रही, मेरे नाम को भी बदनाम किया
मुझको छूने से डरे, जिनको, मैंने दिल से अपना माना
सांसों की डोर जो टूटी थी, फिर क्या अपना क्या बेगाना
इतना भी बुरा तो मैं ना था, जो याद रहा ना एक कल तक
लाज कोई किसी को ना रही, लड़ने को रुके ना दो पल तक
किसी को मेरे धन की चिंता, किसी को भोजन का सूखा था
सब तो मेरे अपने थे मगर, अपनेपन का ही तो भूखा था
जब तक मैं साथ रहा तब तक, उनके दिल को ना’पसंद’ रहा
मेरे जाने के बाद भी दिल उनका, मेरी जानिब ही बंद रहा
मुझको भी मिली एक नई दुनिया, उनको उनका साम्राज्य मिला
जिस राह का कोई मोड़ नहीं, फिर क्या शिकवा और क्या ही गिला
© अरुण अर्पण
Image credit – samacharjagat.com
मेरे जाने के बाद भी दिल उनका, मेरी जानिब ही बंद रहा
मुझको भी मिली एक नई दुनिया, उनको उनका साम्राज्य मिला।
बहुत बढ़िया लेखन।👌👌
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सादर धन्यवाद 😊
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मुझको छूने से डरे, जिनको, मैंने दिल से अपना माना
सांसों की डोर जो टूटी थी, फिर क्या अपना क्या बेगाना…
शानदार ..
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Thanks dear 😊
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