होली – यादों के झरोखे से
यादों में सिर्फ बची है अब, होली बचपन की भोली थी
कटुता मिट जाती थी जिससे, खुद मिट गई आज वो होली भी
उत्सव ना एक दिन का यह था, दिन पंद्रह पूर्ण रंगीले थे
रंगों की पुड़िया का हठ था, रंगों से सजे सब सजीले थे
मिल बांट सभी गुझिया खाते, आशीष बड़ों से पाते थे
मदिरा का शौक बहुत कम था, वो रंग भी कम ना नशीले थे
फगुआ गाते और नृत्य करें, मदमस्त थी होली की टोली भी
देवर भाभी का भेद ना था, मीठी थी हंसी ठिठोली भी
बारात देख सब खुश होते, गदहा सवार कोई दूल्हा था
जूतों की माला फूल लगे, होली का मस्त वो उत्सव था
दुश्मन भी गले मिल जाते थे, रंगों संग छूटें द्वेष सभी
सब कुछ वाजिब था होली में, रंगों की रंगीली होली थी
चमके गुलाल हर माथे पर, आंखों में प्रेम लकीरें थीं
मिल जुलकर सब खुश होते थे, वो होली भी क्या होली थी
© अरुण अर्पण
Pic credit – Google images
Kya baat hai… Bahut Badhiya… 👍👍👍
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बहुत बहुत धन्यवाद 😊
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Happy Holi
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Wish you the same. Thanks 😊
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Bahut sunder Arun. Nice lines.
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Thank you so much sir
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sundar aur satya kavya.
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Thank you so much
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