कैसे मनाए श्रम दिवस
चुपचाप बैठा धाम में
आंसू भरी आंखें लिए
चिंता सताए शाम की
रोटी मिले या ना मिले
बच्चों का क्रंदन असह्य है
भार्या का सूना भाल है
जीवन की प्रत्याशा घटी
सुरसा बना अब काल है
भविष्य की अब सोच क्या
जब आज ही निश्चित नहीं
कैसे मनाएं वो श्रम दिवस
दुर्भिक्ष सम भीषण घड़ी
© Arun अर्पण
खूबसूरत रचना
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बहुत बहुत धन्यवाद 😊
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very nice.
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Thanks 😊
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