मानव बनाम चप्पल
टूटी चप्पल, हुई विचलित नार
चुपचाप खड़ी मोची के द्वार
पतले प्लास्टिक में बंधी चप्पल
ना थी खुलने की जिद पर यार
निष्ठुर मोची था धुन में मगन
ललना को नजर आए अब गगन
गई उंगली हार, तब दांत की धार
चप्पल तत्क्षण प्लास्टिक के पार
यह दृश्य देख ठिठके अर्पण
कुत्सित समाज का मैला दर्पण
मोची के पास थे कई धारदार
चप्पल मुख लाने को विवश नार
डूबे कुछ स्वार्थ में यूं मानव
तज पांव, शीश पर चढ़ी चप्पल
जिसकी भी मति में हुई गड़बड़
हारे मानव, जीती चप्पल
© Arun अर्पण