खुशियों की राखी
बातों नातों में सरस मधुमय
खटके क्यों युति उसकी चपला
एक नार सृजित सर्जित सकला
कर्तव्य सृजन फिर क्यों अबला
पय सुधा पिला बनी मातृ मधुर
समरस समोदर भगिनी सबला
जब धार धरण को पुरुष तड़पे
संबल सम्पुट फिर क्यों अबला
बन नीर भरी दु:ख की निर्झर
सिंचित करती जीवन की कला
दारुण गति पुष्प व नार कहिन
निरसित कुरबक कैसी सबला
करमूल सून बहे पूत की लोर
चीखे भ्रूणहंत अवलुंचित श्रोत
पातक चातक बन ढूंढे चैन
आजीवन अवनत ग्रीव नैन
अधिकार प्राप्त उसको समस्त
मत करना उसको अस्त व्यस्त
राखी की डोर, रक्षा का वचन
है धन्य नारी, शत बार नमन
अर्पण राखी पर कहते आज
भगिनी भ्राता क्यों रहें उदास
ले आओ मिठाई और राखी
भ्राता भगिनी रहें सदा सुखी
© Arun अर्पण
रक्षाबंधन के पावन पर्व पर सभी भाइयों एवं बहनों को ढेर सारी शुभकामनाएं