मर जाना बहुत जरूरी है
समझे न मनुज नौकर कहकर
बंधुआ रख पेट जलाता है
खुद छप्पन भोग छके छककर
नौकर भूखा सो जाता है
कोई न सगा उसका फिर भी
परिवार समझ सह जाता है
सांसे तो चलें उसके दिल में
पर जीते जी मर जाता है
अपनेपन का नाटक रचकर
आत्मा को जलाया जाता है
देकर दुःख दर्द हंसे नर अधम
वह रोता है, सो जाता है
तपता है अनेकों रोगों से
फिर भी तड़पाया जाता है
ऐसा निर्दोष मनुज अक्सर
रिश्तों में छलाया जाता है
है हक सबका संसाधन पर
मेहनत और लगन जरूरी है
है प्राप्य मगर जो भोग्य नहीं
उसका सड़ना ही जरूरी है
मेहनत से प्राप्त जिसे रोटी
उसका सम्मान जरूरी है
दुर्जन जो खुशी छीने उसका
मर जाना बहुत जरूरी है
कानून अनेकों बने किंतु
लागू होना भी जरूरी है
रिश्वत से छिपाए लाशों को
उसका जलना भी जरूरी है
रिश्तों की ओट में घात करे
उसका डरना भी जरूरी है
मानव हंता ऐसे जन का
मर जाना बहुत जरूरी है
© Arun अर्पण
Waah!
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Thanks 😊
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😐😐😐😐
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😊
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