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मैं जब दुल्हन बन पिया
तेरे घर को आऊंगी
आंखो में हजारों सपने
ले कर संग आऊंगी
बाबुल का घर छोड़ दिया
तुम संग प्रीत लगाई है
अब तुम्हारा घर आंगन महकाऊंगी
कुछ आशाएं है तुमसे पिया
कुछ अभिलाषाएं भी है
इन नयनों में कुछ स्वपन भी हैं
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कभी मैं रूठ जाऊं तो तुम
मित्र बन मना लेना मुझे
हार जाऊं जो कभी हिम्मत बंधा देना मेरी
जो बीमार हो जाऊँ मां जैसे बन जाना तुम
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भटकी कभी राह तो पिता जैसा झिड़कना तुम
साथ खड़े रहना सदा ऐसे जैसे भाई खड़े होते
जब उदास हो जाऊँ तो सखी भी बन जाना तुम
सारे रिश्ते पीछे छोड़ दिए,सब रिश्ते निभाना तुम
अगर हो मुझ से कोई शिकायत तो खुल के बताना तुम
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ये प्यार भरा जीवन होगा कठिनाई भी आएंगी
पर वादा है तुम से मैं हर मुश्किल सह जाऊंगी
हम मिल बाट कर रूखी सूखी भी खा लेंगे तुम्हारे हृदय में रहने को कुछ भी कर जाऊंगी
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तुम से ही अब जीवन तुम संग नया घरौंदा बनाऊंगी
छोटे सा घर आंगन और उसमें तुम संग जीवन
बिताऊंगी
रचना : अल्हड़ सी लड़की
Nice..
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TQ 😊😊
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