मोहब्बत अपनी सदियों तक पुकारी जाएगी
महफ़िल में जब वो रश्क़ से निहारी जाएगी
इश्क़ से कहना ज़ख़्मों की बारात ले आए
जुदाई अपनी दुलहन की तरह सँवारी जाएगी
हम खुद को भी जिस नशे में यूँ भूल बैठे हैं
अपने ऊपर से कैसे इश्क़ की खुमारी जाएगी
तुम सिर्फ़ प्यार नहीं, दिल हो मेरा, जान हो मेरी
किसी ग़ैर को कैसे चाहत ये तुम्हारी जाएगी
पल पल मर के जीना तो ये कैसा जीना है
मौत की आग़ोश में ही बेक़रारी जाएगी
कह दो इन शरीफ़ों से बचा लें दामन अपना
जला देगी, जो मेरे दिल से, चिंगारी जाएगी
हमसे ना उलझे वो कि हम तैयार हैं मरने को
बिन मौत उनकी शराफ़त फिर मारी जाएगी
जो तू यहाँ नहीं तो मुझको तू वहाँ मिलना
ये ही दुआ है रब से रूह जब हमारी जाएगी
खुबसूरत,, कविता
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TQ Sir 😊😊🙏🏻🙏🏻
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