मां की गुड़िया बनना था कांच की गुड़िया बन गई मैं…
ना गले लगाया किसी ने अबतक पर रोते सबने देखा है
नफ़रत देखी आंखों में जिसने भी अब तक देखा है
एक बूंद प्यार की खातिर ज़हर की पुड़िया बन गई मैं
मां की गुड़िया बनना था कांच की गुड़िया बन गई मैं
जीवन मेरा कर्ज बना ये हसीं मेरी गुलाम है
जो जब चाहे दे दे ताने ये दिल एहसानों से नीलाम है
बन बन कर इच्छा मैं सबकी लकड़ी की डिबिया बन गई मैं
मां की गुड़िया बनना था कांच की गुड़िया बन गई मैं
ना पूछो मुझसे हाल मेरा अभी दिल मेरा थोड़ा ज़ख्मी है
जब भी हारती मैं कहती हूं अभी हिम्मत थोड़ी रखनी है
कैसे भूलू बचपन वो जब बिलख बिलख कर सो गई मैं
मां की गुड़िया बनना था कांच की गुड़िया बन गई मैं
तुझे इल्म नहीं एहसास नहीं क्या क्या मैंने खोया है
सुनकर मेरी मां का नाम दिल जार जार हो रोया है
रखने को उसकी गोदी में सिर तड़प तड़प कर ही रह गई मैं
मां की गुड़िया बनना था कांच की गुड़िया बन गई मैं
ना याद कोई ना निशानी है ना तस्वीर कोई पुरानी है
पूरा बचपन गुज़रा मां बाप के बिन अभी उम्र एक बितानी है
कैसी होती मां की मोहब्बत ये सोच सोच ही रह गई मैं
मां की गुड़िया बनना था कांच की गुड़िया बन गई मैं….