एक ख़त लिख रही हूँ, पुरानी यादों के नाम
वो भूली बिखरी एहसासों के नाम
कैसी हो,क्या तुम्हें मेरी याद आती नही
मैं अच्छी तो हूँ, पर तुम्हारी याद दिल से जाती नहीं
याद है तुम्हें, तुम्हारे साथ अपना बचपन बितायी
तू हमेशा ख़ुश रखती,ग़म का एहसास ना दिलायी
आज जब भी कभी तन्हाई में गुम हो जाती हूं
मैं, मैं नही रहती,तुम हो जाती हूँ
तेरी यादो में अक्सर खो जाती हूं
तेरी आग़ोश में ही सो जाती हूँ
क्यों मेरा साथ छोड़, इतनी बदल गयी
मुझे आगे बढ़ा कर,वही ठहर गयी
क्यों सारी खुशियाँ तेरे पास छूट गयी
यादों का आईना मेरे दामन में सिमट गयीं
क्यों चली आती हो बार बार मेरी तन्हाई में
क्या बोर नही होती मेरी रुस्वाई में
सुनो ना,एक काम करो,मुझे अपने पास बुला लो ना
थाम लो मेरी हाथ,मेरी माँ से फिर मिला दो ना
फिर से बचपन का झूला झूला दो ना
इस ग़म को दूर भगा दो ना
फिर से मुझे खुल कर हँसा दो ना
इन उदासियों को मिटा दो ना
फिर बारिश में भींगा दो ना
फिर माँ की गोद मे सुला दो ना
ऐ पुरानी यादों,मुझे ऐसे तुम तड़पाओ ना
आना है तो हक़ीक़त में आओ,याद बनकर मत आओ ना।