
तसव्वुर क्या सजाऊँ मै नींदों को आखों मे भरकर, अपने ख्वाब-ओ-ख्याल टूटने से हर पल मे डरती हूँ।
कुछ आरजू हैं जो हयात लिए फिरती है दर-बदर, उनको लफ्ज़ों में कलम के बहाने पन्नों से कहती हूँ!
रंगों मे सिमटी ये दुनिया फकत बेरंग महसूस होती, कहीं न कहीं जमाने की बेरुखी मै खुद से सहती हूँ!
लम्बी सी शामों में दिल की सारी हसरतें गुजर जाती, सुबह से इक इक करके जिनकी कफस में रहती हूँ!
खुदगर्जी के दौर से लाख अच्छा था हमारा बचपन, उस पल की बीती कहानी सोच अश्कों में बहती हूँ!