
नयन तुम्हारे मुझसे कितना बतियाते है
कुण्दित केश
तुम्हारे काले नित प्रेम सुधा बरसाते हैं
कानों में बाली
के झूमर मानो ये मुझे बुलाते है
श्रृंगार तुम्हारा
अल्हड़ यौवन मन मेरा ललचाते है
बिंदिया सूरज सी
लगती जीवन में सवेरा लाती है
अँचल की ठंडी
छाँह मेरी जन्मों की थकान मिटाती है
मोहित करते
होंठ तुम्हारे ठग हैं मेरा मन लूटे हैं
ये कोमल से
दो बाँह तुम्हारे मेरे सारे जग को समेटे है
नाज़ुक पैरों में
जब जब नूपुर की छम छम होती है
हृदय झनक
उठता मेरा चिंता मन की सब खोती है
क्षण भर साथ
तुम्हारा प्रेयसी सौ जन्म तृप्त कर देता है
हृदय पे हाथ
तुम्हारा प्रेयसी खाली मन को भर देता है
प्रेम रस से अत्भूत श्रृंगार,,,
जैसे प्रेयसी में बसंत बहार,,, अतिसुंदर शब्दावली अभिव्यक्ति
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दिल से शुक्रिया आपका 🙏🏻🙏🏻
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