एक बेटी जब बनती है बहू
चीजे इतनी तेजी से बदलती है
कि
वो समझ ना पाती
कल तक जो, बेबाकी पे अपने
पाती थी शाबाशी
आज छोटी सी बात पर
मिल जाते है उलाहने
कल तक जो अपने अल्हड़पन में समाए थी सबको
अचानक से हो जाती हैं जिम्मेवार
कि
मिलती है अब नसीहते उसे
अब वो बहू है किसी घर की
तो बदलना होगा उसे खुद को
ढालना होगा ससुराल की रवायतों में
कल तक बात-बे-बेबात जो बच्चों-सी रो जाती थी
आज अपने दर्द को पीकर भी मुस्कराती है
कि
सवाल उठेंगे उसके आसुओं की एक एक बूंद पर
कल तलक जब वो बेटी थी
लोग ढूंढते थे खूबियां उसकी
पर बहू है वो अब,
हरपल सबकी नजरें जमी है उसपे
कि
कब कोई गलती हो उससे
और
मौका मिले हमें की
कस सके ताने उसपे
दे सके उलाहने उसको
कि निकाल सके खीज उसपे
किसी और के गुस्से का भी
सच में जब बेटियाँ बनती हैं बहुएं
बहुत कुछ बदल जाता है
हमेशा के लिए