हम उम्र की उस सीमा में नहीं है
कि कह सके हम आहत हुए हैं
किसी भी चीज से और खासकर
प्रेम से तो बिल्कुल नहीं
जैसे एक औरत …
अपनी माहवारी छुपाती है
तमाम पीड़ाओं के बावजूद
उसे कह नही सकती है
जबकि वो सही है
सारे संसार की संरचना …
इसी पर टिकी हुई है
फिर भी उसे छुपाना
पड़ता है
क्योंकि समाज ने उसे एक दृष्टि
हेय की दी है
बिल्कुल उसी तरह हमें अपना प्रेम भी
छुपाना पड़ता है ना तो हम अपनी तकलीफ
दिखा सकते हैं ना फटा हुआ अपना कलेजा
बस चुप चाप सहते रहना है
संसार के सारे सृजन भी तो अधूरे हैं
प्रेम के बिना
यह दोनों ही भाव निस्वार्थ है
महावारी से अगली पीढ़ी का
जन्म होता है …
वह भी किसी और के नाम के
हमारे मन से रिसता प्रेम
हृदय में निस्तारित अभिन्न भाव
वह भी किसी और के नाम के