
क्या रोक सकें ये लहरें जब तूने चलने की ठानी।
पर्वत है ,पठार है नहीं रुके नदी प्रवाह है
पत्थर भी पथ बाधक बने बदला मात्र आकार है
अब तक जीवन में क्या किया अब यह बात पुरानी
क्या रोक सके ये लहरें जब तूने चलने की ठानी।
हां, मंद होती नदी धार भी जब प्रबल बाधाए आती
रुकती नहीं, थकती नहीं बस संघर्ष करती जाती
संघर्ष को हथियार बना यह अनुभवी की वाणी
क्या रोक सकें ये लहरें जब तूने चलने की ठानी।