गुजरते गुजरते इक दिन गुजर जायेगी,
जिंदगी जैसे तैसे गुजर जायेगी,,
ये तपन,ये थकन, गुलिस्तां ए बदन,
हर कहानी एक दिन अंत तक आ जायेगी,,
ये तबस्सुम,ये तराने,ये मोहब्बत के फसाने,
सब खत्म और जिंदगी की भोर इक दिन ढल जाएगी,,
ये देह का वृक्ष इक दिन दरख़्त बन जाएगा,
दरख़्त की टहनियां इक दिन झड़ जाएंगी,,
कब्र में लेटा हुआ है जिंदगी का सबसे आखिरी सच,
एक दिन लेटने की बारी सबकी आयेगी,,
तुम लेट जाओगे कब्र में और मौत के आगोश में मसल दिए जाओगे,
राख बनके बिखरने की बारी सबकी आयेगी,,
बिखरते बिखरते ये राख इक दिन शहर तक आयेगी,
और फिर किसी उन्मादी जीवन के पांवों तले से गुजर जायेगी,,
धीरे धीरे राख पूरे शहर मैं फेल जायेगी,
और उजले से जीवन को मौत की तरफ खींच लाएगी,,
राख दर राख लाशों के ढेर से सनी होंगी सड़कें,
कब्र में जगह पाने को रूह छटपाटाएगी,,
मुक्ति मिलेगी या फिर से नया शापित सा जीवन,
इस जन्म मरण के चक्र में रूह धंसती जायेगी,,
वो चाहेगी चिर स्थाई मोक्ष को पाना,
और उसकी चाहत फिर से अगले जन्म तक चली जाएगी,,
ये जन्म मरण के चक्र में फंसकर,
रूह तड़पती जाएगी,तड़पती जाएगी,बस तड़पती जाएगी…!!
Nice poem. True words. Expressed the feeling perfectly
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