कविता/poetry काव्य श्रृंखला – 44 17 May 2020 दान या दिखावा लड़कर वो खुद शमशीरों सेपत्थर को मकान बनाता हैआजीवन इज्जत को तरसेचुपचाप कहीं मर जाता है देखें हैं लुटेरे अरबों केबंगलों की नींव हैं लाशों परआंखों की…
कविता/poetry काव्य श्रृंखला – 42 2 May 20202 May 2020 कैसे मनाए श्रम दिवस चुपचाप बैठा धाम मेंआंसू भरी आंखें लिएचिंता सताए शाम कीरोटी मिले या ना मिले बच्चों का क्रंदन असह्य हैभार्या का सूना भाल हैजीवन की प्रत्याशा घटीसुरसा…